शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2009

गुरुवार, 26 फ़रवरी 2009

एक दिन संसद की यात्रा

कल मुझे राज्य सभा का कार्यवाही देखने का मौका मिला ।कार्यवाही देखने के पहले मुझे तीन परते सिक्यूरिटी चेक के से गुजरने पड़े । पहले मोबाइल जमा करवाना पड़ा, इलेक्ट्रॉनिक सामान भी। फिर मुझे बैठना पड़ा अपने नम्बर के लिए की मै कब अंदर जाऊ । फिर जब मै अंदर पहुची तो फिर एक स्तर सिक्यूरिटी चेक के । यहाँ तो हमेंअपनी स्वेटर ,पेन, बैग wअगेर रखवा लिए। उनका कहना था की हम ऊपर जा कर पेन वगेरा फेक सकते है चलती सदन पर। ऊपर मुझे फ्रंट रो में भी नही बैठने दिया गया , आप अगुली उठा कर कुछ दिखा कर पुच भी नही सकते। इतनी sakhti । ये saari बाते यही बताती है की अगर हम चाहे तो चीजो पर लगाम लगा सकते है, पर चाहते ही नही है। खास कर नेता। मुझे लगता है हर नागरिक को अपने जीवन काल में एक बार संसद की कारवाही तो जरूर देखना चाहिए। नही तो जनतंत्र में रहने का कोई फायदा नही।

बुधवार, 25 फ़रवरी 2009

जीवन के रंग









यह एक ही जगह है , पर अलग -अलग मौसम में इसकी अलग -अगल तस्वीर हो जाती है और ये हमें अलग तरह से गुदा -गुदाते है। ऐसा ही हमारा जीवन है ,अलग -अलग परिस्थिति में हम अलग - अलग तरह से दीखते है।






शनिवार, 21 फ़रवरी 2009

मै और मेरी आवारगी

इस साल मेरी आवारगी अपनी घुमाकड़ पांति से फिर शुरू हुई। मै जा पहुची व्रन्दावन , मथुरा, लखनऊ । श्री कृष्ण की धरती वृन्दावन में ,मथुरा में आनंद तो बहुत आया , पर वहा तेजी से आधुनिक भक्तो का जमावाडा बढ़ता जा रहा है उस से लगता है की इस जगह की पौराणिकता को खतरा है। इसके पुराने इतिहास को बनाये रखना है तो हमें अपनी आधुनिक सभ्यता को जरा घर छोड़ कर आना पड़े गा।
आप ऐसा कतईन समझे की वहा के स्थानीय लोग बहुत सीधे है। उनेह भी ज़माने की हवा लग चुकी है बंधू और वे नए नए सही - ग़लत तरीके इजाद कर रहे है लोगो से पैसे कमाने (ऐठने के).यही जीवन है। या कह सकते है यही आधुनिक होना है। .....

पुरानी यादे


आज कुछ मेल खगाल रही थी ,तो कुछ पुरानी यादे तजा हो गई। २००६ का गोरखपुर में संबाद का आयोजन । यही मै पहली बार अल्पना मिश्रा से मिली। वो मुलाकात आज भी हमे गुदगुदा देता है। वही मेरी मुलाकात हरीओम जी , अंशुल जी त्रिपाठी , प्रह्लाद अगरवाल जी से हुई। एक मजेदार घटना वहा घटी ,मेरे hisaab से अंशुल और हरी ॐ की शक्लइतनी मिलती जुलती है ki mai धोखा खा गई। वैसे शक्ल के मामले में ऐसी गलती मुझसे नही होती .क्या हुआ सुबह मेरी मुलाकात अंशुल से हुई , दोपहर के वक्त वो मुझे किसी युवती के साथ दिखायी पड़ा । मुझे लगा यार सुबह तो ये अकेला था दोपहर तक इसने महिला मित्र भी बना लिया। मैंने उससे इस सफलता राज जानने कि सोच रही थी कि तभी अंशुल उस युवती के साथ जाता हुआ दिखायी पड़ा , मैंने बात करने के गरज से उससे पूछा जा रहे हो, तो उसने कहा -नही thodi देर में आ रहा हू । मै कुछ और सोचती तभी पीछे से फिर अंशुल आता हुआ दिखायी पड़ा । मै चकरा गई , है !यह फिर अकेले कहा से आ गया .फिर bahar की तरफ़ देखा तो वहा भी अंशुल उस युवती के साथ जाते हुए दिखे। तब मैंने आते हुए अंशुल से पूछा तुम्हारा कोई जुड़वाँ भाई है क्या? उसने कहा नही। फिर मैंने उसे उस जाते हुए अंशुल को दिखाया तो उसने कहा - अरे ये तो हरी ॐ जी है, और वो उनकी पत्नी। तब जा कर मुझे सारा माजरा समझ में आया। यानि अंशुल त्रिपाठी जी ने कोई कमाल नही दिखाया किसी युवती पर। ये मेरा दृष्टि का कमाल था जो कनफुजिया गई थी। फिर मुझे bachpan की padhi हुई वो pankti याद aai की हमारा एक hamshkla इस duniya में कही न कही jaroo होता है.

मंगलवार, 3 फ़रवरी 2009

पब पर हमला - कितना सही

पब पर हमला करने वालो का कहना है कियहाँ महिलाये और युवतिया ग़लत कामकर रही है , संस्कृति से बिमुख हो गई है .उन्हें राह पर लाने के लिए ये सब किया जारहा है।
सही है भाई साहब, जो कर रहे है वो सब सही है। पर क्या इन भाई साहबो को रेड एरिया में बिकती हुई माँ- बहने नही दिखती । क्या उन्हें बचाना इनकी जिम्मेदारी नही है? उन्हें इस दल-दल से निकलना क्या इनका फ़र्ज़ नही बनता, या वेश्यालय होना हमारी संस्कृति का एक हिस्सा है हर शहरो में?