इन सब चाजों के लिये ? बीस वर्ष के उसके वैवाहिक जीवन की कीमत के रुप में मिली वो सम्पति आज भी रमा भोग रही है। अब आप पूछेंगे अगर मरते वक्त उस आदमी की उम्र अस्सी वर्ष थी रमा का वैवाहिक जीवन बीस वर्ष का था तो उस आदमी की उम्र साठ वर्ष का थी जब उसने रमा से शादी की तो उस वक्त रमा की उम्र क्या रही होगी ? यही स्वाभाविक प्रश्न है। उस वक्त रमा की उम्र 25 वर्ष थी। आय। अपने से 35 वर्ष बडे़ उम्र के व्यक्ति के साथ रमा ने कैसे शादी की ? या उसने शादी के लिये हाँ क्यों भरी ? क्या उसकी कोई मजबुरी थी या कोई दबाब ? मजबुरी तो थी ही पर दबाब बिल्कुल नहीं । रमा ने खुद इस्तेहार पढ़कर इसका जबाब दिया था ? उसने अपनी मर्जी से उस व्यक्ती के साथ शादी की। इस बारे में रमा का कहना है की उसकी सौतेली माँ के कब्जे में उसके पिता पूरी तरह ते आ गये थे। भाई था पर वे अपने परिवार में मस्त। उसे रमा और रमा की शादी से कोई मतलब नहीं था ।अब इस अवस्था में वो वैसे भी किसी औने दृ पौने के हत्थे चढ़ती । इसलिये उसने बहुत ही प्रैक्टिकल निर्णय लिया हेमंत से शादी का । उसके अनुसार हेमंत से शादी का करके वो कम से कम जिंदगी अपने हिसाब से तो गुजर सकेगी । अब हेमंत साहब की क्या कहानी है । आप पूछेगे ? तो में आपको बताऊँ सभी बात अभी बता दूंगी तो मेरे पात्र आपस में क्या बातें करेगें । फिर काहनी में टिविस्ट कहाँ से आयेगा ? और जोर का छटका धीरे से कैसे लगेगा ?
वापस अब फिर रमा के डेसिंग टेबल पर मुड़ते है जहाँ वो तैयार हो रही है अपने प्रेमी से मिलने जाने के पूर्व । एक मिनट आपको बता दुँ । रमा को बहुत आरति है । उसके इस मित्र को प्रमी कहे जाने से । उसका कहना है वो उसका मित्र है । बस मित्र । अगर हम जिंदा है । मनुष्य है तो अपने परिवारवालों या मित्रों से ही मिलेगे। शादी के बाद रमा ने अपने परिवारवालों से कोई सम्पर्क नहीं रखा। इसलिये उसके परिवार उसके ये मित्रगण है। रमा के हिसाब से वह आदमी उसे बहुत अच्छी तरह समझता है। बस औरतों की यही बुराई है जहाँ भी उसे ये लगता है कि कोई उसे बहुत अच्छी तरह समझता है। वे बस उसी की हो लेती है।) फिर उसके उस मित्र द्वारा उसे अपना टिम्बर का माल कोलकत्ता के नीमतल्ला के काठगोदाम वाले इलाके में बिकवाने में थोड़ी मदद भी मिल जाती है। (हम्म ............ इसका मतलब रमा थोड़ी समझदार और चालाक भी है।) उसके मित्र के साथ दोपहर में उसका लंच था। इसके बाद शाम को उसे भारतीय भाषा परिषद में एक सेमिनार में जाना था। (रमा को थोड़ी बहुत साहित्य चर्चा की बीमारी है।)
यहीं से मेरे उपन्यास में टिविस्ट आता और रमा के जीवन में भी। जब वो सेमिनार हॅाल में पहुँची तो सेमिनार शुरू हो चुका था। कोई वक्त वहाँ अपना भाषण रख रही थी। रमा हॅाल में कुर्सियाँ टरोलते हुये एक खाली कुर्सी पर बैठ गई। कुछ मिनट के बाद उसे लगा यह आवाज तो जानी-पहचानी है। कौन है....कौन है..... अरे ये तो उसकी बचपन की सहेली उमा की आवाज है। माईक और उमा का नाता बहुत पुराना है। स्कूल के दिनों में भी डिबेट,आलोचना का कार्यक्रम क्यों न हो,उमा का नाम उसमें जरूर शामिल रहता था। सिर्फ नाम ही नहीं पुरस्कार पाने वालों में भी उसका नाम हमेशा शामिल रहता था। हमेशा की तरह आज भी उमा के भाषण पर लोग मंत्र-मुग्ध थे। मानों माँ सरस्वती का वरदान हो उसे। जब भी वो मुहँ खोलती सामने वाले की बोलती बंद कर देती।
आज भी वो महिलाओं के हक में बोल रही थी। वही बुलंद आवाज- कौन कहता है महिलाओं पर अत्याचार बंद हो गये है। अगर अत्याचार बंद हो जाते,उनकी दोयम दर्जे की स्थिति खत्म हो जाती तो आपके ही बंगाल में एक माँ को अपनी चार-चार बच्चियों की हत्या करके खुद को गमछे में बाँधकर पेड़ से लटकर आत्महत्या नहीं करनी पड़ती। लोग कहते है महिलायें हर क्षेत्र में आजकल काम कर रही है। मुझे बताइये महिलायें आजकल पहुँच तो हर जगह गई है पर वहाँ उन्हें शान्ति से काम कौन करने दे रहा है। सहकर्मियों के गंदे हरिकोण ईब्र्या, बॉस के गंदे मनसुबों का सामना इसे हर जगह करना पड़ रहा है। फिर घरवालों की अग्नि परिक्षा। सर्वोच्य न्यायालय ने भले यौन उत्पीड़न के खिलाफ सख्त कारवाई करने का प्रानधान बना दिया है। पर इनको लागू करने की जिम्मेवारी कौन लेगा। उस अत्याचार के विरूध्द कारवाई करने का माहौल कौन बनायेगा। पुरूष आज भी सिर्फ ऐसी सभाओं में मौन सम्मलित होकर अपने फर्ज की इति श्री कर लेते है। जो महिलायें अपने जीवन में एक मुकाम पर पहुँच गई है, उन्हें उन सब तकलीफों से कोई मतलब नहीं। हर स्त्री का संघर्ष वही शून्य से आरम्भ होता है।आगे की स्त्री ने जो रास्ता तय किया है उसका फायदा उसके बाद वाली पीढ़ी को उतना नहीं मिल रहा है जितना मिलना चाहिये। फिल्मों में महिलाओं के जिस्म को जरूरत से ज्यादा दिखाया जाता है। जैसे जिस्म दिखाना ही आजादी का पयार्य या एक मात्र सबूत हो। आर्थिक आजादी की बात कोई नहीं करता। सभी आजादी-आजादी चिल्लते है। आर्थिक आजादी के लिये भी महिलाओं को क्या-क्या करना पड़ता है। इस पर भी खुलकर बहस नहीं होती। प्रमोशन के नाम पर उसका मानसिक और दैहिक शोषण लगातार छलता रहता है। आज भी लिफ्ट के दरवाजों पर गंदे-गंदे अशोभनीय शब्द चमकते रहते है। जो महिलाओं के प्रति पुरूषों की आदिय सोच को प्रमाणित करते है। पुरूष आज भी महिलाओं को एक वस्तु समझता है। जो स्त्री पुरूषों की इन कमजोरियों को समझ जाती है। वे इसका इस्तेमाल करके आगे बढ़ जाती है,तब ये इस्तेमाल हुये पुरूष चिल्लाते है कि महिलायें गलत तरीकों का इस्तेमाल करके आगे बढ़ जाती है। जिस्म की नुर्माइश कर वे प्रतिस्पर्धा में पुरूषों को पछाड़ देती है। पर वे यह नहीं बताते उसी समूह में वो महिलायें जिसने अपने जिस्म की नुर्माइश नहीं की थी उसे उसने आगे क्यों नहीं बढ़ाया या बढ़ने दिया। तभी रमा को लगा उसकी पिछली सीर पर बैठा व्यक्ति धीरे से कुछ रह रहा है-साली,खुद पुरूषों का शोषण करती है, वो क्यों नहीं कहती। शब्द सुनकर रमा के कान गर्म हो गये। उसने पीछे मुड़कर उस आदमी की ओर देखकर कहा-अगर आप कुछ कहना चाहते है-तो क्रपया जोर से खड़े होकर कहिये।, इस तरह धीरे-धीरे बोलकर औरों को डिस्टर्ब न करे। रमा की बात सुनकर और अगल-बगल के आदमी चुप हो गया।
तभी उमा का भाषण समाप्त हो गया,लोग तालियाँ बजाने लगे। रमा भी ताली बजाने लगी । नीचे उतरते हुये उमा को देखकर रमा सोचने लगी। उमा कितनी बदल गई है। बचपनवाली उमा की तेजी के साथ वक्त के अनुभव उसके साथ जुड़ गए है..उमा की धार और तेज हो गई है...। वो सोच रही थी कि वो उमा से मिले या नहीं.. यही सोचते-सोचते उमा उसके बगल से गुजरी.. अचालक क्या हुआ दोनों में किसी को कुछ पता नहीं चला उमा पलटी और रमा ने कहा- कैसी हो उमा, ..एक पल रुक कर उमे ने कहा रमा... हूँ.. वाट-ए-प्लीजेंट सरप्राइज.. इतने दिनों बाद भी याद रखा तुमने.. अरे बचपन के दोस्त है, कैसे भूल जांऊगी ... एक मिनट रुकना ..तुम अभी यही हो तो..रमा ने हाँ कहा..एक साथ चलेंगे ..जल्दी में नहीं हो तो ..ना.. बस ठीक है.. कह कर फिर उमा प्रशंसको से घिर गई...
करीब आधे घंटे बाद जब वो खाली हुई तो अपनी थुलथुल काया के साथ वो रमा की ओर बढ़ी .. अच्छा तुझे अगर जल्दी ना हो तो मेरे साथ मेरे गेस्ट हाउस चल..
वही रात गुजारना ,बातें करेंगे...
मुझे कोई जल्दी नहीं है, मैं यही पार्क होटल में ठहरी हूँ ... परसों हिमाचल चली जाऊंगी
एक सप्ताह वहाँ रहकर फिर बम्बई...वहीं रहती हूँ....
अरे ये तो अच्छी बात है कभी बम्बई आनाहुआ तो तेरे घर पर ठहरूंगी...
बता कितने अच्चे-बच्चे हैं तेरे...
एक भी नहीं.
आय, लेकिन मैंने जहां तक सुना है तूने शादी की थी की थी पर बच्चे नहीं हैं...
उसकी ओर उमा ने देखते हुए कुछ रुककर फिर कहा..अच्छा छोड़ किसी से तेरा अभी कोई संपर्क है...
है ना , पूनम से..
पूनम का नाम सुमकर उमा चहक पड़ी... उसी कबूतरी पूनम से ..कैसी है वो...अपने पँख खोले या नहीं अभी तक उसने...
बतांऊगी सब इतनी बेसब्र न हो.. पहले तेरे गेस्ट हाऊस चले...
हां,हां ,कहती हुई उमा और रमा लिफ्ट से नीचे उतरी और दोंनो गाड़ी में बैठ गई...
गाड़ी अलीपुर की तरफ चल पड़ी.. गेस्ट हाऊस पहुंच कर उमा ने रमा से कहा..
क्या पियेगी.।कुछ खास नहीं। बस कुछ कोल्डउ ड्रिंक ही चलेगा। नौ बजे कोई गेस्ट आने वाला है मुझसे मिलने के लिये। अभी आठ बज रहे है। पौने नौ पर निकल जाऊँगी।
“बड़ी कैलकुलेटड़ हो गई है आजकल।“ वक्त ने बना दिया।
अच्छा चल कोल्ड ड्रिंक ही पीते है।दृ कह कर उमा फ्रिज खोल कर कोल्ड ड्रिंक लेने चल पड़ी।
कोल्ड ड्रिंक हाथ में लेकर लौटते हुए उसने रमा से पूछा दृ“पूनम कैसी है?, क्या उससे मिल सकती हूँ मैं?“
“हाँ-हाँ क्यों नहीं। आज रात वो किसी पार्टी में गई हुई है। साढ़े दस बजे लौटेगी। मेरी कल ही उससे बातचीत हुई है। अगर सबकुछ ठीक रहा तो कल हमलोग मिलते है। “
“ओ.के.। तू रात को मुझे कनफर्म कर देना। वर्ना कल सुबह कही मैं चली जाऊँगी।
पक्का।
कोल्ड ड्रिंक पीते पीते रमा ने कहा- मैं एक दो बार दिल्ली आई थी। तब तूझसे मिलने की कोशिश भी की। पर तुम विदेश गई । इसलिये मिलना नहीं हो पाया । ‘ अच्छ य कोल्ड ड्रिंक पीते-पीते उमा ने उत्सुकता वश रमा की और देखा , ‘तुने फिर अपना नम्बर क्यों नहीं दिया । मैं फोन कर लेती ।
मुक्षे ये सुजा ही नहीं । फिर मुक्षे लगा पता नहीं इतने दिनों बाद मुक्षे तुम पहचान पाओगी या नहीं । इसी उधेड़- बुन में मै वापस चली आई।
पागल इसमें न पहचानेने वाली क्या बात है। बचपन के दोस्तों को कोई भूलता है क्या ?
‘भूलने वाले’ भूलते ही है’ रमा ने कहा ‘किसकी बात कर रही है तू
‘तूझे याद है हमलोग के साथ सेनल नीम की एक लड़की पढ़ा करती थी।
जो परीक्षा के समय मेरे घर पर मुझसे नोट्स लेने के लिए आया करती थी। जब मेरे मां की मृत्यु अचानक हो गई थी। तब वो मुझे एक दिन रास्ते में मिली पर मुझे देखकर मुंह फेर कर चली गई जब नोट्स लेना रहता था। तो मेरे घर बार-बार आती थी उस समय उसकी सगाई तय हो चुकी थी। वो मेरे बिल्डिंग के बगल वाली बिल्डिंग में रहती थी ।
पर न तो मेरी तो मेरी माँ की मौत पर वो आई न ही उसने मुक्षे अपनी शादी तय होने की बात बताई।
‘ बडी बदतमीज थी वो।
छोडो यार ऐसे लोग होते है दूनिया मै। ऐसे ही लोग हम लोगों को स्पशल बनाते है। अगर सब हम जैसे हो जाये तो दुनिया अलग कहा रही ।
सही बात । अचानक उमा की नजर उसकी घडी़ पर पडी जो आठ- चालीस दिखा रहीं थी
। उमा बोली देख पौने नौ बज रहा है । तू उठ। पर रात को मुक्षे बता देना कल का क्या प्रोग्राम है । पूनम न भी मिली तो हम मिल लेगे।
नहीं नहीं वों जरुर मिलेगी । मुक्षसे ज्यादा तुक्षसे मिलने के लिएऐ वो उत्सुक रहती है। मैं रात के कब तक तुक्षे फोन कर सकती हुँ।
कभी भी । मेरा फोन खुला है। पर मैं मोबइल बंद कर देती हुँ । मेरा लैड लाइन नम्बर तू ले जा।
रमा चली गई । इतने दिनों बाद भी मिलने पर उन्हें अपने बीच कोई दीवार महसूस नहीं हो रही थी। पर उसे समक्ष भी नहीं आ कहा ता कि क्या बात करे।
उमा किताब लेकर बैढ गई। किताब पढते-पढते कब बारह बज गये उसे पता ही नहीं चला । इसी बीच उसके कुछ परिचितो के फोन आते- जाते रहै। जैसे ही वो बेड रुम की तरफ बढी फोन की घंटी बज उठी। उमा ने सोचा इतनी रात गये किसका फोन होगा?
रीसिवर उठाकर उसने जैसे ही हैलो कहा। दूसरी ओर से आवाज आई-उमा ,रमा बोल रही हूँ। पूनम से बात हो गई। वो बहुत खुश हैं। तुझसे मिलने के लिये बेताब है। ऐसा करते है तेरे गेस्ट हाऊस में हम सुबह-सुबह पहुँच जाते है। फिर निश्चिंतता से बात होगी।“
-ठीक है। कह कर उमा ने फोन रख दिया। सुबह जब रमा उमा से मिलने उसके गेस्ट हाउस में घुसी तो उमा ने उसे ध्यान से देखा । साठ वर्ष की उम्र में भी वह आज की लडकियों को मात दे रही थी । इस उम्र में भी रमा काफी आकर्षक गढीले शरीर की स्वामिनी लग रही थी । रही कुची कसर उसके मँहगे कपडे तथा मेकअप ने पुरा कर दिया था । उसे देखकर उमा को अपने तोते पर कोफी दुख हुआ पर बिछड़ी हुई सहेली से इतने दिनों बाद मिलने की खुशी में वो उसे तुरंत भूल गई। उसने हाथ बढ़ा कर आती हुई रमा को अपने बाहौ में भर लिया।
-आओ बैठो। पूनम नहीं आई। उमा ने पूछा दृ आ रही होगी। मेरे मोबाइल पर उसने फोन तो किया था,निकलते वक्त।
तभी रमा का मोबाइल बज उठा। उसने मोबाइल रीसीव किया । पूनम दरवाजे पर खड़ी है बाहर दृमोबाइल रखत् हुये रमा ने कहा।
आजकल जब से मोबाइल आ गया है लोग कालबेल की जगह मोबाईल ही बजाने लग गये है। होलते हुये उमा वफ्लैट का दरवाजा खोलने के लिये आगे बढ़ी। दरवाजा खोलते ही उसे एक आक्रति नजर आई जो मोटी-थुल-थुल,गहनों से लदी,कीमती कपड़े पहने थी। पूनम ऐसी लग रही थी मानो पूरानी पूनम में किसी ने हवा भर दी हो। उमा इसके आगे कुछ सोचती तब तक पूनम खुशी के मारे “हाय उमा हाय मोटी”कहते हुये उससे लिपट गई।
उमा को लगा जैसे तीस-पैंतीस साल सिमट कर उसके वपास एक मिनट में चला आया हो। उसे लगा जैसे कल की ही तो बात है जब पूनम अपनी शादी का कार्ड देने आई थी। तब कितनी खुश थी अपने शादी के निर्णय से वहां पर शायद आज उतनी खुश नहीं लग रही थी। उमा को लगा ये उसका वहम हा। उसे हर किसी को देखकर सोचने की बीमारी हा। उसने तय कर लिया वो आज ये सब नहीं सोचेगी। आज तीनों सहेलियाँ खुल कर बात करेगी। खुल कर आज वो जियेगी। बहुत वर्षो तक वे भविष्य को जी रही थी । भविष्य के बीरे में सोच-सोचकर अन्होने अपना वर्तमान कई वर्षो तक बिगाड रखा था ।
तभी पूनम ने कहा दृइतनी बडी लेखिका हो । पाढकों को काबू में रख सकती हो।तूने क्यौ नहीं रखा । उमा ने उलटा प्रशन किया
अरे मेरा क्या ? मौ तो हाउस वाइफ हूँ । जो होना था होगया । यू तो पब्लिक लाइफ जीती है। मैने सुना है बहुत सारे पुरुष तुक्ष पर लटटू है। उसे कैसे सम्भालती है।
अच्छा पुरुष को काबू में रखने के लिये क्या तोदं काबू में रखना पडता है में बहुत सारी औरतों को जानती हुँ जिनका तोंद उसके काबू में है पर उसका पुरुष नहीं
अब यार तुम लोग बहस करना बद करो । रमा ने कहा दृइतने वर्षो के बाद
मिले है। कुछ अच्छी बातें करो। ये क्या तोदे दृपुरुष औरते लगा रखा है
अरे इसी तीन चीज पर तो दुनिया टिकी है । पेट की आग स्त्री दृपुरुष के
बीच आकर्षण- विकर्षण और राजनीति । उमा ने कहा ।
उमा को तो दो तोदं संभालने बोल रही है । पर अपना क्या हाल बना रखा
है रमा पूनम की और मुखातिब होते हुऐ बोली
अरे मेरी तोद क्या पूरा जीवन ही आऊट आफ कटोल हो गया तुम लोगो नो
तो जीवन के कई रंग देखे खुब नाम कमाया पैसा और शोहरत भी पर क्या
पाया कुछ भी नहीं । पुनम ने रुआसे स्वर में कहा ।
ऐसा क्यो कहती हो । इतने प्यारे प्यारे बच्चे है तुम्हारे । रिंकी जीतू तुने
फोटो भेजी थी ना पिछली बार मुक्षे। रमा ने पूनम की पीठ पर हाथ फेरते
हुऐ कहा ।
हाँ हाँ तो आज कल के बच्चों को माँ बाप की परवाह कहाँ होती है। उन्हे
तो बस पैसों से मतलब रहता है। उनके मामलों में कोई दखल मत
डालो । जब जरुरत पडें तो पैसा दे दो । बस माँ दृबाप का फर्ज पूरा ।
उनका तो जैसे कोई फर्ज ही नहीं बनता । लडका अमेरीका पढने चला गया
कहता है वही बस जाऊँगा। वही किसी अमेरिकन लडकी से शादी कर लूगा
ताकि ग्रीन कार्ड आसनी से मिल जाऐ । रिंकी तो एक विदेश बैक में काम
करती है । देर रात आती है कुछ बोलो तो कहेगी दृमाँ तुम तो दकियानूस
हो उमा और रमा आँटी से कुछ सीखो। खुद भी जीओ और दुसरों को भी जी
ने दो कहते कहते पुनम का गला भर आया । उमा ने उसकी तरफ
पानी का गिलास बढाते हुऐ कहा- ठीक ही तो कहती है जब तुमने उसे इतना
पढाया लिखाया है तो उसे खुद जीने दो । आजदी दो । अपने निर्णय खुद
लेने दो । वो कोई बच्ची तो नहीं है भगवन ने उसे एक अदद सा
दिमाग दिया है । उसे उसरा अस्तेमाल करने दो । तुम अपना दिमाग
अपने लिये इस्तेमाल करो
उमा तुम भी । पूनम ने लाचार नजरौं से उसे देंखा।
तभी रमा बोली दृठीक- कह रही है । उमा । तुमने अपने अपने दिमाग का
इस्तेमाल कब किया है । अंकल ने तुम्हरे लिये लडका देख दिया
तुमने उससे शादी कर ली । स्कूल पास करने के बाद हमने आर्टस लिया तुमने भी ले लिया जिस कालेज में हमलोग गये वही पीछे दृपीछे तुम हो ली । तुमनें कभी विरोध और
सहनति के स्वर ही नहीं रहे। मुक्षे लगता है इन तीस सीलों में भी नहीं रहा होगा ।
तभी फ्लेट का केयर टेकर वहाँ आया वो सावधान की मुदा में दोनों हाथ आगे करके उमा के समाने खडा हो गया । उसे देख कर उमा सपक गई दृये नाशते का आर्डर लेने आया है। उमा ने कहा दृजो भी अच्छी चीजै मिलती है । ले
आओ । पर ढेर सारे बंगाली सदेशे काँचा गोल्ला और ढोकला जरुर लाना
नमकीन में कुछ खास दृ केयर टेकर ने पूछ ।
ऐसा कुछ खाज नहीं । दही दृकचैडी पापडी आलू- टिकिया
मटर पैटीस यही सब । उमा ने जैसे अपने घर से भार उतारते हुये कहा । केयट टेकर से बात करके उमा की
नजर जब पूनप परल गई तो उसे लगा पुमम गुमशुम बैठी है । लगता है रमा की बात उसे चुब गई । उधर पुनम अंदर सोच रही थी इससे अच्छा तो घर पर ही थी । अपनी खोल मैं । पता नहीं आज कल उसे क्या होगया है । उसे किसी की बात बर्दाशत नहीं .
बुधवार, 4 अगस्त 2010
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