इन चेहरों की भीड़ में अपने चेहरे की तलाश है मुझे
पता नहीं यही तो उतर कर रखा था कल टेबल पर
अपना चेहरा धोने के बाद साबुन से , नहीं फेसवाश से.
हडबड में गलती से किसी और का चेहरे को ओढ़ लिया था मैंने.
तब से अपना चेहरा ढूंढ़ रही हूँ मैं
इन चेहरों की भीड़ में !
(बहुत दिनों बाद आज लिखी एक कविता)
सोमवार, 10 अक्टूबर 2011
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