इस आलेख के लिए परमजीत सिंह जी का धन्यवाद।क्योंकि इसकी प्रेरणा मुझे उनकी चिट्ठी से मिली जो उन्होंने मेरे पोस्ट मेरठ की प्रियंका-अंजू पर डाली थी।
परमजीत का कहना था -बालिग होने पर बच्चों के किसी भी कार्य के लिए मॉ-बाप को दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिए। दूसरी बात संपत्ति का अधिकार मॉ-बाप के पास ही सुरक्षित रहना चाहिए क्योंकि ऐसा देखने में आया है कि संपत्ति का बंटवारा होते ही मॉ-बाप दाने-दाने को मोहताज हो जाते हैं।
परमजीत जी के पहले वक्तव्य का जबाब- हमारे भारतीय समाज में बच्चे बालिग होकर भी पूरी तरह बालिग नहीं हो पाते क्योंकि उनके प्रत्येक फैसले में मॉ-बाप की दखलअंदाजी रहती है। चाहे वो पढाई से संबधित हो या दोस्त बनाने से या कपड़े चुननें से हो। मेरे यह बिंदु उठाने का आशय यह है कि हम बच्चों के निर्णय लेने की क्षमता और अपनें फैसले खुद भुगतनें की क्षमता का विकास बचपन, टीनऐज युवावस्था में ही नहीं होने देते है और अचानक उनसे एक दिन कुछ गलती हो जानें पर हम यह कह देते है कि अपनें फैसलों को खुद भोगो।
दूसरी बात बच्चों को बचपन से ही मॉ-बाप यही कहते है कि उनका कमाया बच्चों के लिए ही है। इससे बच्चा अपनें माता-पिता की संपत्ति को अपना समझने लगता है। वैसे माता-पिता ये बात बच्चे के मन में इसलिए डालते है कि लालच में बच्चा उन्हें छोड़कर बुढापे में न जाए। मेरी यह बात आंशिक रूप से सच हो सकती है पर सच तो है ही। फिर बच्चों में यह बात हम बचपन में नही डालते कि तुम खुद कमाओ और अपनी सम्पत्ति खुद अर्जित करो। तीसरी बात हमारे भारतीय अर्थव्यवस्था में इमानदारी और बिना सिफारिस के युवाओं के विकास के इतने कम साधन है कि उनका अपने पांव पर खड़े होना जल्दी,बड़ा मुिश्कल है।
यह भी सच है कि बच्चे मॉ-बाप की संपत्ति लेकर उन्हें निकाल देते है दाने-दाने के लिए मोहताज कर दे सके जो माता-पिता की यथा संभव देखभाल न करते हो।उसके लिए कानून कड़े करने चाहिए , मेर मतलब कानून को ढंग से किरिय्न्वित करना चाहिए बजाये की नए कानून बनने के.
तली दोनों हाथ से बजती है। मेरे ख्याल से प्रियंका-अंजू जैसे अनेकों केस है जो हमारे सामने नहीं आ पाते। कई लड़कियां घर से विद्रोह करके बदनामीं के गुमनाम अंधेरों में छिप जाती है।उनके बारे में किसी ने कोई सुध ली क्या? तब तो मॉ-बाप मरा मानकर उन्हें छोड़ देते है। क्या ऐसे में मॉ-बाप को दंडित किया जाना चाहिए?
चलिए सोच का दायरा अलग-अलग होता है, पर जब हम किसी को स्वतंत्रता नहीं दे सकते तो उसका भार भी हमें ही उठाना होगा और स्वतंत्रता एक दिन में नहीं आ जाती यह अभ्यास की चीज है। धीरे-धीरे आती है।
आशा है आप मेरी राय से इस बार सहमत हों।
माधवी श्री
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
2 टिप्पणियां:
लेकिन खुद के मालिक बने रहने में भी तनाव कम नहीं होता .. बच्चे जवाबदेही लेना नहीं चाहते .. बेहतर होता है कि कम उम्र से ही उनमें जवाबदेही की भावना विकसित की जाए।
ऐसे मां बाप पूर्णत: दंड के भागी हैं।
सौरभ कुणाल
www.syaah.blogspot.com
एक टिप्पणी भेजें