बुधवार, 22 सितंबर 2010

शब्द और संबाद

तुम कुछ बोलते हो
तुम्हारी आंखे कुछ और
मै कुछ बोलती हूँ
मेरा मन कुछ और
शब्द है, पर संबाद नहीं

जिंदगी और हम

हारना हमने सीखा नहीं
जीतने का मौका जिंदगी ने दिया नहीं
कुछ कमी रह गयी थी आपसी समझ में
तभी तो हर मोड़ चौराहा सा नज़र आता है

शुक्रवार, 10 सितंबर 2010




ये है प्रवीना जी और उनकी बहन- मीनाक्षी और उनका स्कूल नाल में, बीकानेर से कुछ दूरी पर . प्रवीना जी की माँ ने यह स्कूल बनवाया ताकि उनकी लडकिया आत्मनिर्भर हो सके और गाव में शिक्षा का प्रसार भी हो सके. जब बीकानेर आना हुआ तो प्रवीना जी के मुहं से स्कूल की बात सुन कर मुझे यह जगह देखने की बहुत इच्छा हुई. जब गयी तो बदलते हिंदुस्तान की एक छबी मेरे सामने आयी. मै प्रवीना जी की माँ से जब मिली तो और मंत्र- मुग्ध हो गयी .पुराने ज़माने की होकर भी वो स्त्री शिक्षा जी जबरदस्त समर्थक है . उनोह ने अपनी चारो बेटियो को पढाया -लिखाया , सिर्फ शादी करके नहीं निपटाया.यही आज की नारी की सार्थकता है .