बुधवार, 24 मार्च 2010

जागरूक जनता और नए राज्य

राज्य बनाना आसान है पर न्याय दिलाना कठिन. राज्यों की संख्या बढा कर हम अशंतुष्ट को संतुष्ट तो कर सकते है पर पीडितो को न्याय तभी मिलेगा जब नए राज्यों में भी भ्रष्टाचार , भाई- भतीजावाद ,बईमानी पाव नहीं पसरेगी . जागरूक जनता ही भ्रष्टाचार को फैलाने से रोक सकती है .भ्रष्टाचार को अगर रोकना है तो हमे जनता को जागरूक करना पड़ेगा .
जनता नए छोटे राज्यों की मांग इसलिए करती है कि उनेह छोटे राज्यों कि मांग इसलिए करती हिया कि उनेह छोटे-मोटे कामो के लिए अपने दूरदराज गाँव - कस्बो से राज्य की राजधानी में आना पड़ता है अपना छोटा -छोटा काम करवाने के लिए भी. अगर वे अपने ही गाँव -कस्बो से कम दूरी पर अपना काम करवा ले तो उनेह इतनी दूर पर अपना काम करवाने के लिए राजधानी के चक्कर नहीं लगाने पड़ेगे .इसके लिए सरकार को सरकारी काम - काज का विकेन्द्रीयकरण करने की दिशा में कदम उठाना चाहिए ताकि जनता को सुविधा मुहैया हो सके . न कि एक जगह सारी शक्ति को केन्द्रित करके रख देना चाहिए . राज्यों कि राजधानी में ठहरने , खाने -पीने ,यातायात की समस्या से लेकर बिचौलियो ,सरकारी बाबुओ के नखरे तक उनेह झेलने पड़ते है . अगर सरकार ग्रामीण जनता की इन समस्यायों का समाधान कर दे तो जनता राज्यों के बटवारे की मांग को खुद ख़ारिज कर देगी .
जनता को यह भी समझाना होगा कि जो नए गठित राज्य है क्या इससे वहां के निवासियो का क्या भला हुआ है, विकास हुआ है ?जमीनों के लगातार बेहताशा बढ़ते दाम विकास का सूचक नहीं है, न ही नए -नए मॉल कपड़ो की दुकाने . स्कूल , कालेज , अस्पताल , बेहतर जीवन - शैली , पर्यावरण को कम नुकसान होना आदि ये विकास के सूचक है . क्या ये किसी नव गठित राज्यों में पुराने राज्यों की तुलना में जनता को बेहतर तरीके से उपलब्ध हो सका है? अगर हाँ तो नए राज्यों का गठन सही हिया वर्ना गलत . झारखण्ड जैसे नए राज्य के गठन से वहां की जनता को क्या मिला
सिवाय कोड़ा जैसे मुख्यमंत्री के वर्ना खनिज सम्पदा से भरा यह राज्य अपने राज्यवासियो के साथ और बेहतर हो सकता था . वही बिहार जैसा राज्य अच्छे नेतृत्व क्षमता के कारण आज प्रगति की राह पर चल रहा है . मायावती के आने से दलितों का कितना भला हुआ या विकास हुआ ? दलितों के लिए स्कूल , कालेज ,अस्पताल खुलवाने की बजाय इस महिला ने इतने पार्क और मुर्तिया बनवा दी कि आनेवाले समय में लोग मायावती को " मुर्तिवती " या "पार्कवती " कहा करेगी . एक अध्यापिका होकर भी मायावती ने शिक्षा की जगह केक काटने और पार्क जैसे विलासिता पूर्ण चीजो को को महत्व दिया . जनता द्वारा दिए गए अवसर को उनोहने सही उपयोग नहीं किया .
इस कारण जनता को आनेवाले दिनों में सही नेतृत्व के लिए प्रयासरत होना चाहिए और उनेह समर्थन देना चाहिए बजाय कि नए राज्यों की मांग को . इसके लिए मीडिया को जनता को तैयार करना पड़ेगा सही रास्ता दिखाकर.

3 टिप्‍पणियां:

कृष्ण मुरारी प्रसाद ने कहा…

नए राज्य से क्या फायदा हुआ?...यह एक पहेली ही है.................
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विलुप्त होती... .....नानी-दादी की पहेलियाँ.........परिणाम..... ( लड्डू बोलता है....इंजीनियर के दिल से....)
http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_24.html

Udan Tashtari ने कहा…

विचारणिय आलेख. चिन्तन मांगता है.

Pawan Kumar Sharma ने कहा…

bahut khoob