सोमवार, 10 दिसंबर 2012

खामोश अदालत जारी है

अभी हाल में मुझे मेरठ के एक मीडिया संस्थान Indian Institute of Film &Television में जाने का मौका पड़ा. वहां के छात्र - छात्रो द्वारा विजय तेंदुलकर द्वारा लिखित और संदीप महाजन द्वारा निर्देशित नाटक " खामोश अदालत जारी है " देखने का मौका मिला. नाटक था तो मेरठ के मीडिया संस्थान के छात्रों द्वारा इस कारण मेरी अपेक्षा बहुत नहीं थी , पर चूकि विजय तेंदुलकर के नाम के आकर्षण ने मुझे वहा जाने पर मजबूर कर दिया. नाटक मध्यवर्गीय समाज और राजनीतिक जगत के दोहरी मानसिकता को रेखांकित करती हुआ समाज के असली चेहरे को परत दर परत उघरता चला जाता है. यह नाटक माना कई दसक पहले लिखा गया हो तेंदुलकर साहब ने पर यह आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उस समय हुआ करता था. इस नाटक में एक शिक्षिका बेनारे बाई के माध्यम से समाज के ठेकेदारों का असली चेहरा धीरे - धीरे नाटक के साथ -साथ दर्शको के सामने खुलता जात है. नाटक में एक घूमंतू गैर पेशेवराना नाटक कंपनी के करता धर्ता और कलाकार एक धनी दम्पति मिस्टर और मिसेस कांशीराम है ,उनका दतक पुत्र , एक असफल वकील , एक असफल वैज्ञानिक ,एक नाटक निर्देशक और एक स्थानीय व्यक्ति के माध्यम से नाटक आगे चलता है अद्रश्य पात्र एक प्रोफेसर का है. मिस बेनारे एक स्वतंत्र विचार वाली महिला है जो जीवन अपने "मूल्यों" के हिसाब से जीना चाहती है. उसका खुलापन तो सबको भाता है "दिल बहलाने" के लिए पर समाज में उसकी स्वीकृति एक "सम्मानित स्त्री" के हिसाब से नहीं होती है. उसके परिचित लोगो को जब यह भनक पड़ती है कि उसने अपनी अस्मिता बचाने के लिए अपने बच्चे की भ्रूण हत्या कर दी है तो उससे यह उगलवाने के लिए वे एक नाटक रचते है नाटक के अन्दर. उस नाटक के जाल में वे मिस बेनारे को फंसा कर उससे कूबुलवाने की कोशिश करते है कि उसने भ्रूण हत्या कि है जो एक जघन्य पाप है. मिस बेनारे उनके चालो को भाप तो जाती है पर कही न कही एक इन्सान होने की कमजोरी के तहत वो नाटक में कही- कही टूटने लगती है , अपना बचाव करने लगती है. उस समय उसका " बेबस स्त्री" होने का रूप सामने आता है , जो बहुत दयनीय है. समाज के ठेकेदार और करीबी लोग किस तरह किसी का जखम उघाड़ कर देखने का मज़ा लेते है यह इस नाटक में हर वक़्त एहसास होता है. भले ही कोई अपने पेशे में सफल न हो उसका चरित्र बहुत बेहतर न हो पर दूसरे के चरित्र की कमिया निकलने में कोई पीछे नहीं हटता. मिस्टर काशीराम वैसे तो अपनी पत्नी को कही बोलने का मौका नहीं देते और मिसेस काशीराम जो हर वक़्त अपने पति की घुड़की खाती रहती है पर बात जब बेनारे बाई पर आती है तो दोनों एक हो कर मकसद को अंजाम देने के लिए एक जुट जाते है.हर पात्र बेनारे बाई को अपने तरीके से ठोक - बजा कर उससे दबी हुई सच्चाई को निकलना चाहता है. इस प्रक्रिया में इन्सान क्या -क्या रूप बदलते है यह इस नाटक में बखूबी जीवंत तरीके से दिखाया गया है. पूरे नाटक को Indian Institute of Film &Television मीडिया संस्थानों के छात्रों - छात्राओ ने बखूबी उकेरा है और अंत तक अपने अभिनय से दर्शको बांध कर रखा . कही से नहीं लगा कि मेरठ जैसे टू टायर शहर के होनहारो ने यह नाटक इतनी सहजता और जीवंत तरीके से किया है. इस नाटक में शैलजा टंडन ने मिस बेनारे के पात्र में जो जीवंतता डाली है उसे शब्दों में बंधना मुश्किल है.अगर मिस्टर काशीराम और मिसेस काशीराम के किरदार को राजेश भाटी और रुक्सार ने जान डाल दिया तो अन्य पात्रो को निशांत ,करण, मनीष , प्रांशु , अंशुल ,शिवान्सु , राजपाल, ललित , जोगिन्दर और राहुल ने बखूबी जिया. नाटक विभाग के अध्यक्ष प्रसिद्ध चरित्र अभिनेता पेंटल का कहना था कि इस शहर के बच्चो में बहुत प्रतिभा है बस जरूरत है उसे उकेरने की. लाइट की व्यवस्था संजू गौतम , संगीत जीशान अहमद -विलायत हुसैन की देख -रेख में रहा है. इस संसथान के प्रबंधक विपुल सिंघल का कहना है कि उनकी टीम इस संसथान को उच्च स्तर की बनाने के लिए कटी बद्ध है. अभी हाल में मुझे मेरठ के एक मीडिया संस्थान Indian Institute of Film &Television में जाने का मौका पड़ा. वहां के छात्र - छात्रो द्वारा विजय तेंदुलकर द्वारा लिखित और संदीप महाजन द्वारा निर्देशित नाटक " खामोश अदालत जारी है " देखने का मौका मिला. नाटक था तो मेरठ के मीडिया संस्थान के छात्रों द्वारा इस कारण मेरी अपेक्षा बहुत नहीं थी , पर चूकि विजय तेंदुलकर के नाम के आकर्षण ने मुझे वहा जाने पर मजबूर कर दिया. नाटक मध्यवर्गीय समाज और राजनीतिक जगत के दोहरी मानसिकता को रेखांकित करती हुआ समाज के असली चेहरे को परत दर परत उघरता चला जाता है. यह नाटक माना कई दसक पहले लिखा गया हो तेंदुलकर साहब ने पर यह आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उस समय हुआ करता था. इस नाटक में एक शिक्षिका बेनारे बाई के माध्यम से समाज के ठेकेदारों का असली चेहरा धीरे - धीरे नाटक के साथ -साथ दर्शको के सामने खुलता जात है. नाटक में एक घूमंतू गैर पेशेवराना नाटक कंपनी के करता धर्ता और कलाकार एक धनी दम्पति मिस्टर और मिसेस कांशीराम है ,उनका दतक पुत्र , एक असफल वकील , एक असफल वैज्ञानिक ,एक नाटक निर्देशक और एक स्थानीय व्यक्ति के माध्यम से नाटक आगे चलता है अद्रश्य पात्र एक प्रोफेसर का है. मिस बेनारे एक स्वतंत्र विचार वाली महिला है जो जीवन अपने "मूल्यों" के हिसाब से जीना चाहती है. उसका खुलापन तो सबको भाता है "दिल बहलाने" के लिए पर समाज में उसकी स्वीकृति एक "सम्मानित स्त्री" के हिसाब से नहीं होती है. उसके परिचित लोगो को जब यह भनक पड़ती है कि उसने अपनी अस्मिता बचाने के लिए अपने बच्चे की भ्रूण हत्या कर दी है तो उससे यह उगलवाने के लिए वे एक नाटक रचते है नाटक के अन्दर. उस नाटक के जाल में वे मिस बेनारे को फंसा कर उससे कूबुलवाने की कोशिश करते है कि उसने भ्रूण हत्या कि है जो एक जघन्य पाप है. मिस बेनारे उनके चालो को भाप तो जाती है पर कही न कही एक इन्सान होने की कमजोरी के तहत वो नाटक में कही- कही टूटने लगती है , अपना बचाव करने लगती है. उस समय उसका " बेबस स्त्री" होने का रूप सामने आता है , जो बहुत दयनीय है. समाज के ठेकेदार और करीबी लोग किस तरह किसी का जखम उघाड़ कर देखने का मज़ा लेते है यह इस नाटक में हर वक़्त एहसास होता है. भले ही कोई अपने पेशे में सफल न हो उसका चरित्र बहुत बेहतर न हो पर दूसरे के चरित्र की कमिया निकलने में कोई पीछे नहीं हटता. मिस्टर काशीराम वैसे तो अपनी पत्नी को कही बोलने का मौका नहीं देते और मिसेस काशीराम जो हर वक़्त अपने पति की घुड़की खाती रहती है पर बात जब बेनारे बाई पर आती है तो दोनों एक हो कर मकसद को अंजाम देने के लिए एक जुट जाते है.हर पात्र बेनारे बाई को अपने तरीके से ठोक - बजा कर उससे दबी हुई सच्चाई को निकलना चाहता है. इस प्रक्रिया में इन्सान क्या -क्या रूप बदलते है यह इस नाटक में बखूबी जीवंत तरीके से दिखाया गया है. पूरे नाटक को Indian Institute of Film &Television मीडिया संस्थानों के छात्रों - छात्राओ ने बखूबी उकेरा है और अंत तक अपने अभिनय से दर्शको बांध कर रखा . कही से नहीं लगा कि मेरठ जैसे टू टायर शहर के होनहारो ने यह नाटक इतनी सहजता और जीवंत तरीके से किया है. इस नाटक में शैलजा टंडन ने मिस बेनारे के पात्र में जो जीवंतता डाली है उसे शब्दों में बंधना मुश्किल है.अगर मिस्टर काशीराम और मिसेस काशीराम के किरदार को राजेश भाटी और रुक्सार ने जान डाल दिया तो अन्य पात्रो को निशांत ,करण, मनीष , प्रांशु , अंशुल ,शिवान्सु , राजपाल, ललित , जोगिन्दर और राहुल ने बखूबी जिया. नाटक विभाग के अध्यक्ष प्रसिद्ध चरित्र अभिनेता पेंटल का कहना था कि इस शहर के बच्चो में बहुत प्रतिभा है बस जरूरत है उसे उकेरने की. लाइट की व्यवस्था संजू गौतम , संगीत जीशान अहमद -विलायत हुसैन की देख -रेख में रहा है.

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