गुरुवार, 11 दिसंबर 2008

दिल्ली में जीवन

दिल्ली में जीवन कोलकाता की तरह उतना सीधा -साधा नही है ,पर फिर भी यहाँ आनद आ रहा है मुझे .शुरू -शुरू में कुछ समस्याए सामने आइ थी जैसे पैदल बहुत चलना पड़ जाता था , ऑटो का किराया बहुत मंहगा ,जो भी सामान खरीदना है वो पहले से लिस्ट बना लो ,तरफी करते हुए कोई काम नही चलेगा. लेकिन धीरे-धीरे जीवन ने अपनी रफ्तार लेनी शुरु की अब लोग भी आपने से लगने लगे है।
दिल्ली में जो एक बात मुझे नही पसंद आती है वो है माँ- बहन की गाली। जिसे देखो माँ-बहन की गाली देते रहते है.मजे की बात ये है की गाली देने वाला भी खुश और सुनने वाला भी खुश , समझ में नही आता माजरा क्या है।
दिल्ली में एक इलाका है सी आर पार्क जहा जा कर लगता है कोलकाता मे आ गए .वहाँ पुचका , चाव्मिन, रस्गोल्ला, संदेश,कड़ा पाक, कचागोल्ला सभी मिल जाता है। कभी- कभी लगता है मै एक साथ दो- दो शहरों में जी रही हूँ .


कोई टिप्पणी नहीं: