गुरुवार, 9 जुलाई 2009

पुलिस इन दिल्ली

दोस्तों , परसों मै अपनी एक परिचिता के साथ इंडिया गेट पर टहलने गयी थी । हमने सैर के बाद भुट्टा खाया । तभी
एक पुलिस की गाड़ी रुकी । उनमे से दो पुलिसवाले उतरे , एक कोल्ड ड्रिंक वाले के पास गया और दो कोल्ड ड्रिंक उठा लाया , दूसरा हमारे सामने वाले भुट्टे वाले से तीन- चार भुट्टा सेकवा कर ले लिया वो भी प्लास्टिक की थैली में , जब दिल्ली में प्लास्टिक की थैली बैन है। भुट्टे ले कर उसने रूपये नही दिए, ये आम बात हो शायद रोज मर्रा की जिंदगी में , पर मुझे अच्छा नही लगा। शायद मै भी डरपोक थी जो उस समय उन पुलिसवालों को कुछ नही बोली।
अब मन में बात कचोट रही है , इस लिए आप सब से बाट रही हु ताकि मन का बोझ हल्का हो। इन पुलिस वालो की तनख्वाह २० हजार रुपये है , कांस्टेबल रैंक पर फिर भी उस दो टेक के भुट्टे वाले का २०- ३० रुपये मार कर उनेह क्यामिला मुझे समझ में नही आ रहा है।
आप अपनी राय जरूर लिखिए गा

3 टिप्‍पणियां:

राजीव तनेजा ने कहा…

पुलिस वाले बेचारे भी क्या करें?...अपनी कमाई से खरीदी गई चीज़ उन्हें हज़म नहीं होती है ना...

Taarkeshwar Giri ने कहा…

बहुत अच्छा, मुझे आपका नाम तो नहीं पता है और मुझे आपको बकबक कहना अच्छा नहीं लग रहा है, खैर, पुलिश वाले बेचारे करें क्या उनको भी तो आगे हिसाब किताब देना पड़ता , नौकरी मिली तो मोटा पैसा दिया बेचारों ने और कंही और तबादला लिया तो मोटा पैसा दिया बेचारो ने, खाने पीने का इंतजाम तो एईसे ही होगा ना.

मधुकर राजपूत ने कहा…

माले मुफ्त दिले बेरहम, यही है पुलिस की कहानी। निर्माण दमन के लिए हुआ था, सो बदस्तूर ज़ारी है।