शनिवार, 21 फ़रवरी 2009

पुरानी यादे


आज कुछ मेल खगाल रही थी ,तो कुछ पुरानी यादे तजा हो गई। २००६ का गोरखपुर में संबाद का आयोजन । यही मै पहली बार अल्पना मिश्रा से मिली। वो मुलाकात आज भी हमे गुदगुदा देता है। वही मेरी मुलाकात हरीओम जी , अंशुल जी त्रिपाठी , प्रह्लाद अगरवाल जी से हुई। एक मजेदार घटना वहा घटी ,मेरे hisaab से अंशुल और हरी ॐ की शक्लइतनी मिलती जुलती है ki mai धोखा खा गई। वैसे शक्ल के मामले में ऐसी गलती मुझसे नही होती .क्या हुआ सुबह मेरी मुलाकात अंशुल से हुई , दोपहर के वक्त वो मुझे किसी युवती के साथ दिखायी पड़ा । मुझे लगा यार सुबह तो ये अकेला था दोपहर तक इसने महिला मित्र भी बना लिया। मैंने उससे इस सफलता राज जानने कि सोच रही थी कि तभी अंशुल उस युवती के साथ जाता हुआ दिखायी पड़ा , मैंने बात करने के गरज से उससे पूछा जा रहे हो, तो उसने कहा -नही thodi देर में आ रहा हू । मै कुछ और सोचती तभी पीछे से फिर अंशुल आता हुआ दिखायी पड़ा । मै चकरा गई , है !यह फिर अकेले कहा से आ गया .फिर bahar की तरफ़ देखा तो वहा भी अंशुल उस युवती के साथ जाते हुए दिखे। तब मैंने आते हुए अंशुल से पूछा तुम्हारा कोई जुड़वाँ भाई है क्या? उसने कहा नही। फिर मैंने उसे उस जाते हुए अंशुल को दिखाया तो उसने कहा - अरे ये तो हरी ॐ जी है, और वो उनकी पत्नी। तब जा कर मुझे सारा माजरा समझ में आया। यानि अंशुल त्रिपाठी जी ने कोई कमाल नही दिखाया किसी युवती पर। ये मेरा दृष्टि का कमाल था जो कनफुजिया गई थी। फिर मुझे bachpan की padhi हुई वो pankti याद aai की हमारा एक hamshkla इस duniya में कही न कही jaroo होता है.

1 टिप्पणी:

chavannichap ने कहा…

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