शनिवार, 21 फ़रवरी 2009

मै और मेरी आवारगी

इस साल मेरी आवारगी अपनी घुमाकड़ पांति से फिर शुरू हुई। मै जा पहुची व्रन्दावन , मथुरा, लखनऊ । श्री कृष्ण की धरती वृन्दावन में ,मथुरा में आनंद तो बहुत आया , पर वहा तेजी से आधुनिक भक्तो का जमावाडा बढ़ता जा रहा है उस से लगता है की इस जगह की पौराणिकता को खतरा है। इसके पुराने इतिहास को बनाये रखना है तो हमें अपनी आधुनिक सभ्यता को जरा घर छोड़ कर आना पड़े गा।
आप ऐसा कतईन समझे की वहा के स्थानीय लोग बहुत सीधे है। उनेह भी ज़माने की हवा लग चुकी है बंधू और वे नए नए सही - ग़लत तरीके इजाद कर रहे है लोगो से पैसे कमाने (ऐठने के).यही जीवन है। या कह सकते है यही आधुनिक होना है। .....

3 टिप्‍पणियां:

MANVINDER BHIMBER ने कहा…

aadhunikta ase ही आती है ....jagaha badal जाती है

Udan Tashtari ने कहा…

यही हालात हैं...चाहे जो नाम दे लें.

यशवंत सिंह yashwant singh ने कहा…

मथुरा, वृंदावन, हरिद्वार और ऋषिकेश मेरे मनपसंद के जगह हैं। यहां पिछले साल काफी मस्ती की। गया तो था आफिसियल वर्क से लेकिन वहां का राधे-राधे और जय श्री कृष्णा सुनकर जी लग गया। वहां से लौट कर कुछ पीस भी लिखा था जिसे आप पढ़ सकती हैं यहां---

http://bhadas.blogspot.com/2008/03/blog-post_8977.html