गुरुवार, 6 अगस्त 2009

एक परी थी !


ये कविता रजनीश ने मुझे भेजी थी पड़ने के लिए ,मुझे बहुत पसंद आयी आप सब से बटना चाहू गी - माधवी श्री


एक परी थी,
हाँ वो परी ही तो थी!
मुझे वो सोनू कहा करती थी,
और में भी उसका शोनू ही तो था !
हमारी मिली जुली खनकती ,
हँसी आज भी मेरे कानों में गूंजती है,
जिसकी आवाज सुनकर मेरी आँखें बंद होती थी !
और सुबह जिसकी आवाज सबसे पहले सुनता था,
हाँ वो परी ही तो थी!
जीवन का सफ़र जारी है,
मेरा भी उसका भी,
बस नहीं है तो इतना कि,
हम हमसफ़र नहीं हैं !
परी हमसफ़र होती भी नहीं है,
सच वो परी ही तो थी !
क्या परी फिर से किसी को भी सोनू पुकारेगी ?
फिर से किसी को शोना बनाएगी ?

1 टिप्पणी:

M VERMA ने कहा…

परी हमसफ़र होती भी नहीं है,
सही कहा है परियाँ कब हमसफर होती है
तारीफ के शब्दो से परे खूबसूरत रचना