शुक्रवार, 14 अगस्त 2009

कमीने


कल कमीने सिनेमा का प्रिविऊ देखनोको मिला। जैसा सोचा था वैसी ही मूवी निकली - विशाल भरद्वाज की : एक दम धासु , खालिस देशी। विशाल की मूवी हमेशा से मिटटी से जुड़े होते है, उसमे सेक्स , हिंसा ,देसी- विदेशी गानों का खुबसूरत और जबरदस्त तालमेल होता है।
कहानी एक जुड़वाँ भाई यूपी के जो मुंबई में पाले बड़े होते है , एक भाई- बहन जो मराठी होते है के अलावा एक माफिया गैंग , पुलिस , रेस के घोडे -रेस का मैदान और उसमे तीन बंगाली बाबूओ का किरदार कुल मिला कर कहानी
इतने सुंदर तरीके से गुथी गयी है कि एक मिनट के लिए आप का मन उसे छोड़ कर जाने के लिए नही होगा ।
विशाल ख़ुद एक संगीतकार है ,इसलिए उनमे संगीत की समझ और पकड़ बहुत मजबूत है। मिटटी से जुड़े देशी संगीत का जादू उनकी फिल्मो में भरपूर मिले गा। वैसे भी मकडी,मकबूल,ओमकारा जैसी फिल्मे देने के बाद विशाल के बारे में कुछ नया लिखना मुश्किल ही है। कुछ फिल्मे हीरो-हेरोइनो के नाम से जानी जाती है कुछ निर्देशक के नाम से जानी जाती है .विशाल उन निर्देशकों में है जिनकी फिल्मे उनके निर्देशन -संगीत के लिए जानी जाती है।
इस फ़िल्म में मुझे प्रियंका चोपडा जितनी अच्छी लगी उतनी किसी फ़िल्म में नही लगी। शहीद का तो कोई जबाब नही, जिस तरह से हकलाने का अभिनय उसने किया है इससे पता चलता है अभिनय उसके खून में है।
इस फ़िल्म को तीन कारणों से जन जाए गा - पहला इसमे यू पी - मराठी विवाद को बहुत सुंदर तरीके से उठाया गया है, दूसरा - इसमे एक लड़की की बगावत अपने भाई के खिलाफ दिखायी गई है, जो उसके चंगुल से निकल अपना जीवन जीना चाहती है। (वैसे - गुलाल फ़िल्म में एक बहन का इस्तेमाल उसके भाई द्वारा अपनी सत्ता हासिल करने के लिए बखूबी दिखाया गया है ,पर इसमे बहन की बगावत सफल रहती है , गुलाल में तो बहन परिस्थितियों से समझोता करते हुए दिखायी गयी है। )
तीसरा- क्षेत्रीय भाषा का जबरदस्त प्रयोग इस में दिखाया गया है। जैसे बंगला में जब बुकी भाई लड़ते है तो "फज्लामी" शब्द का प्रयोग किया गया है आज कल जब बंगला फ़िल्म जगत मुम्बैया फ़िल्म के प्रभाव से ग्रसित है और इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल बंद हो गया है , उस समय हिन्दी सिनेमा में इस शब्द का इस्तेमाल विशाल की भाषा और स्क्रिप्ट पर जबरदस्त पकड़ दर्शाती है।

2 टिप्‍पणियां:

सुशील छौक्कर ने कहा…

कुछ इन्हीं वजहों से सोच रहा हूँ मैं भी देख आऊँ जाके। गानों का जवाब नही।

Dipti ने कहा…

आपकी इस समीक्षा को पढ़कर लगता है कि फ़िल्म किसी तरह का कोई लूप होल नहीं है। वैसे फ़िल्म के प्रोमो देखकर मुझे ऐसा लगा था कि शायद फ़िल्म में हिंसा और डार्क शैड कैरेक्टर ज़्यादा होगें।