सोमवार, 10 अगस्त 2009

लड़कियो की खरीद- फरोद सेक्स बाजार में

एक एनजीओ ने अभी एक प्रेस कांफ्रेंस का आयोजन किया था जिसमे एक बच्ची को बांग्लादेश से छुड़ाया गया था और उसे उसके माँ -बाप को सौपा दिया गयाथा जो कि पंजाब के थे। ये प्रयास काबिले तारीफ है,पर सवाल उठता तक कि इतने सारे एनजीओ मिलकर कितना ,सुधर ला सके है। क्या मीडिया ने इस पर अब तक कोई खोज पूर्ण रपट बनाई है।अबतक कोई रिपोर्ट मीडिया में क्यो नही आयी किकितने रुपये इन एनजीओ को मिलते है और कितना ये अपने तामझाम में खर्च करते है और कितना ये उन मदों या कामो पर खर्चा करते है जिनके लिए उनेह ये मोटी रकम मिलती है। ये जो आकडे पेश करते है वो कितना विश्वसनीय है। अगर ये विश्वसनीय नही है तो इनकी बातें हम क्यो सुने? उनेह तवज्जो क्यो दे? एनजीओ एक बहुत बड़ा मध्यम है जनतंत्र में सुधार लाने का इसलिए इसे ढंग से मोनिटर करने की जरूरत है ।

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