मंगलवार, 18 अगस्त 2009

शाहरुख़ और महारास्ट्र के किसान

परसों रविवार को टाईम्स ऑफ़ इंडिया या कहे सभी बड़े अखबारों और न्यूज़ चंनेलो की ख़बर थी कि शाहरुख़ के साथ अमेरिका में एअरपोर्ट पर बदसलूकी हुई जाँच के दौरान । अभी तीन दिनों में भी मीडिया का बुखार नही उतरा शाहरुख़ के साथ बदसलूकी पर। ४०%-२०% कवरेज शाहरुख़ को मिल रही है सभी प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर ,पर ४० किसानो की आत्महत्या पर किसी मीडिया कर्मी ने इतना कागज नही रंगा। टाईम्स में यह स्टोरी शाहरुख़ वाली न्यूज़ के साथ थी पर एक-दो कालम में ख़तम कर दी गयी वही शाहरुख़ वाली न्यूज़ अन्य पन्नो पर भी चली फोटो के साथ प्रमुखता से , हर किसी की राय ली जा रही है कि क्या शाहरुख़ के साथ जो बरतओ हुआ वो सही था या ग़लत , उचित या अनुचित .किसी ने किसानो की अत्महत्यावाला मुद्दा इतनी तीव्रता से नही उठाया जितनी तीव्रता से शाहरुख्वाला मुद्दा उठाया । क्या ४० किसानो की जान इतनी सस्ती है कि किसी मीडिया कर्मी को इससे जुड़े सरकार की ग़लत नीतियों, अफसरों की लापरवाही ,किसानो की अज्ञानता , आम जनता की संवेदनहीनता पर ऊँगली रख सके । कोई सवाल - जवाव का सिलसिला इस पर सुरु क्यो नही होता की इतनी कर्ज माफ़ी बाद भी क्यो इतने किसान आत्महत्या करे चले जा रहे है। जिस स्वाइन फ्लू बीमारी पर रोज इतने पन्ने रंगे होते है है रोज उससे मरनेवालों की संख्या भी किसानो की आत्महत्या की संख्या से कम है। २७ लोग स्वाएन फ्लू से मरे है ।
मेरा यह कहना है की कही हम आउट ऑफ़ प्रोपोसन हो कर इस लिए तो नही सोच रहे है कि फ्लू के साथ होस्पिटालो का लंबा चौडा कारोबार जुडा है पर किसानो के साथ अभी तक मीडिया की कोई मिलीभगत नही हुई है, न शाहरुख़ की तरह उनका कोई पीआरओ है, ना वो शाहरुख़ की तरह उनेह चाय पिला सकते है , न गिफ्ट दे सकते है। न ही उन गरीब किसानो से जुड़ कर कोई स्टेटस सिम्बल का अहसास किसी मीडिया कर्मी को होगा। वो तो बिचारा घरपर डींग भी नही मार सकेगा की वो किसी सुपर स्टार से मिल कर आया है।
हां एक बात और : क्या राजीव शुक्ला इतनी आसानी से किसी आम नागरिक का फ़ोन उठा ते जो मुसीबत में फसा हो और उसकी मदद के लिए किसी अफसर तो ताबड़तोड़ फ़ोन करते। नही कभी नही। क्या यही जनतंत्र है। क्या यही आम जनता का राज है। सच कहते है शाहरुख़ " थोड़ा और विश करो , डिश करो"
हम आम जनता विश ही नही करती तो लातम -जूतम तो खायेगे ही। शाहरुख़ के साथ बद्सलोकी और ४० किसानो की जान क्या एक ही मुद्दा है? ६२ साल की आज़ादी के बाद हमने जो चुना वो सामने है । मरता गरीब आदमी जो पत्रकारों के लिए उतना अहम् नही है पर सुपर स्टार के साथ अमेरिका का सलूक देश के लिए चिंता का विषय है। गहन चिंता का विषय है।
मजे की बात ये है कि शाहरुख़ अमेरिका जाते रहेगे , सारे सुपर स्टार जाते रहे गे , बेचारे किसानो का हाल वही का वही रहेगा ............

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