सोमवार, 12 अक्टूबर 2009

कल दिल्ली अंतररास्ट्रीय आर्ट फेस्टिवल में बडाली बंधुओ को सुनना एक स्वर्गीय अनुभव था. उसके कुछ सूफी गाने के बोल मै आपलोगों से बटना चाहूगी जिसका मतलब कुछ ऐसा निकलता है - "फकीरों के मजार पर दिए हमेशा जलते है , पर राजाओ - बादशाहों के मजार पर कौन दिए जलाता है.... " कितनी बड़ी बात बडाली बंधुओ ने कह दी एक छोटी सी लाइन में. एक बात और इतने बड़े फनकार हो कर भी उनमे विनम्रता इतनी कि कहते है कि - गायक तो बहुत है, गाना बहुत लोग गा लेते है , पर हम तो आप के सामने हाज़री लगाने आये है, हमारी हाजरी कबूल करे...
उनको सुनने की तमन्ना मुझे वर्षो से थी और इन्तेजार का परिणाम भी बेहतर निकला .दो घंटे जानते पता ही नहीं चले कैसे निकल गए....

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