बुधवार, 21 अक्तूबर 2009

एक कविता

हर हिन्दू के अन्दर एक हिन्दू है
हर मुस्लमान के अन्दर एक मुसलमान
पर हर इन्सान के अन्दर एक इन्सान क्यों नहीं

3 टिप्‍पणियां:

kishore ghildiyal ने कहा…

shayad insaan pahle hindu ya muslim banna chahta hain kewal insaan nahi

आमीन ने कहा…

जब तक हर हिन्दू के अन्दर का हिन्दू और हर मुसलमान के भीतर का मुसलमान नही मर जाता... तब तक इंसान के अन्दर का इंसान जन्म नही ले सकता

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

हर हिन्दू के अन्दर एक हिन्दू है
हर मुस्लमान के अन्दर एक मुसलमान
पर हर इन्सान के अन्दर एक इन्सान क्यों नहीं

वाह...बहुत खूब....!!