सोमवार, 30 नवंबर 2009

वो लड़का

वो लड़का , जिसकी अब सगाई हो चुकी है
वो पूरी कोशिश करता है कि
अपनी होने वाली बीबी के सामने वो
खुद को साबित करसके कि
वो सिर्फ उसका है.
जबकि ,वो लड़का अच्छी तरह से जनता है कि
वो अपनी बीबी का तो क्या
वो खुद का भी नहीं है.
वो अच्छी तरह जनता है कि
वक्त आने पर अपने फायदे के लिए
वो खुद भी धोखा दे सकता है.

वो लड़का पूरी कोशिश करता है कि
अपनी शादी में वो उन लडकियो को न बुलाये
जिनके साथ वो घूमा - फिर करता था.
क्यों कि बाहर घुमने वाली लडकिया
भांड हुआ करती है
जिसमे चाय पी कर फेक दिया जाता है
बोन - चाइना की कप प्लेट नहीं
जिसमे चाय पी कर वापस उसे धो कर
शो केस में सजा कर रख दिया जाये
दूबारा इस्तेमाल के लिए.

माधवी श्री

शुक्रवार, 27 नवंबर 2009

विनीता काम्टे २६/११ के शहीद वरिष्ठ पुलिस अधिकारी अशोक काम्टे कि पत्नी है . उनोह ने अभी एक पुस्तक लिखी है "To The Last Bullet",इस में उनोह ने उन कारणों की पड़ताल करने की कोशिश की है जिन कारणों से उनके पति और अन्य पुलिस अधिकारियो की मृत्यु हुई . उनका यह प्रयास न्याय पाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है ,एक महिला होकर उनोहने चुपचाप घर में बैठ कर नियति को स्वीकार करने की बजाय लड़ना बेहतर समझा . मेरी यह पोस्ट उनके जज्बे को सलाम है, उनकी जुझारू प्रवृति को सलाम है जिस में सच्चाई की तह तक जाने की ईमानदार कोशिश है.
उनके इस प्रयास से शायद पुलिस के अन्दर की खामियो को बहार लाने में मदद मिलेगी. एक बात और , अगर यही काम किसी पत्रकार ने किया होता तो और भी अच्छा लगता .

बुधवार, 25 नवंबर 2009

बिहारी और मराठी -बीच में देश का संविधान

महाराष्ट्र की विधान सभा में जो हुआ उसके लिए केवल राज ठाकरे एंड कंपनी को दोषी ठहराना काफी नहीं है. राजनितिक स्तर पर कांग्रेस , बीजेपी , एनसीपी की चुप्पी देश की एकता के लिए घातक सिद्ध हो रही है .किसी भी भाषा को नीचा दिखा कर किसी भी भाषा को ऊपर उठाया नहीं जा सकता है. हिन्दी को नीचे गिरा कर मराठी भाषा को स्थापित नहीं किया जासकता , न ही वो आम जनता के बीच कभी मान्य होगी .कोई भी भाषा जनता अपनी जानकारी बढ़ने के लिए ,या भाषा प्रेम या उस मिटटी में रहते -रहते जाने- अनजाने सीख जाती है. उसके लिए किसी तरह का अतिरिक्त दवाव की जरूरत नहीं होती. जब दबाब की जरूरत हो तो समझ ले आपसी प्रेम में दरार है या जरूरत की कमी है या कोई पक्ष हीनता बोध का शिकार है. जबरदस्ती तो आप किसी बच्चे को भी आज के ज़माने में कुछ सिखाने पर मजबूर नहीं कर सकते .
राज ठाकरे एंड कंपनी का इस तरह का बर्ताव क्या मराठी भाषा और मराठियो के लिए परेशानी का सबब नहीं बन जायेगा आनेवाले दिनों में ? आज की दुनिया में जब विश्व में हर जगह हर प्रदेश भाषा के लोग मिल जाते है ऐसी स्थिति में अगर महाराष्ट्र के बहार रह रहे मराठियो के साथ अगर दुर्वह्वार होता ही तो क्या राज ठाकरे एंड कंपनी उनेह बचाने आएगी. जो पढ़े -लिखे मराठी चुप रह कर राज ठाकरे एंड कंपनी को अपना समर्थन दे रहे है क्या वो घर से बहार निकल कर अपना मुकाम हासिल करने जायेगे तो क्या उनेह अगर इस तरह के बर्ताव का सामना करना पड़ा तो उनेह कैसा लगेगा?
अगर राज ठाकरे एंड कंपनी को मराठी भाषा और मराठी मानुष की इतनी चिंता है तो मराठी भाषा के उत्थान के लिए उनोह ने क्या योजना चलाई है ? उनके विकाश के लिए क्या योजनाये बनाई है सिवाय के उत्तर भारतियो को पीटने के. अगर bihari प्रतियोगिता परीक्षा दे कर नौकरी प्राप्त करता है तो उनेह मराठियो को भी मेहनत के लिए प्रेरित करना चाहिए और अगर वे प्रतियोगिता परीक्षा पास कर के नौकरी में आते है तो शिकायत तो होनी नहीं चाहिए.
सिर्फ अगर कोई वह पैदा हुआ हो इस कारण से वहां की चीजो पर अपना अधिकार जाताना चाहता है तो उसे अपने आपको उस स्थान के विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए तैयार रहना चाहिए न कि कोई और आकर मेहनत करे और उस जगह का विकास करे और जब फल प्राप्त करने का समय ए तो भूमि पुत्र जग गए.
और अंत में बिहार - यूपी के नेताओ के लिए कई दिनों से यह खतरे की घंटी बज रही है कि वे अपने प्रदेश में विकास के कार्यक्रम को तेजी से चलाये और साथ ही साथ सामाजिक विकास, परिवर्तन के भी बारे में सोचे, बिना उसके कोई भी विकास पूरी तरह से सफल नहीं होगा. विदेशो - देश में बसे कईयुवा bihari ऑरकुट के माध्यम से बिहार में बदलाव के बारे में सोच रहे है , बिहार सरकार को चाहिए कि वे उनेह विकास के कार्यक्रम से जोड़े और प्रदेश को इसका पूरा लाभ पहुचाये.

POLICE & NEW MEDIA

बदलते समय के साथ नई युवा पीढी भी बदल रही है . समाज भी बदल रहा है और समाज के हर हिस्से को छुनेवाला पुलिस विभाग . ऑरकुट और फेसबुक जैसे सामाजिक साईट पर कई पुलिस वाले दिखने लगे है अपने विचारो और तस्वीरो के साथ. कुछ ने तो इसे अपने जीवन में आरहे बदलाव का माध्यम बनाया है ,कुछ अपनी ट्रेनिंग में आ रहे पलो को दोस्तों -जनता के साथ बटना चाहते है. इसमें नवनीत सिकेरा का ऑरकुट प्रोफाइल बहुत हद तक सामाजिक और थोड़े उनके निजी पलो से आम जनता को अवगत करवाता है. एनकाउंटर स्पेसिअलिस्ट नवनीत ने तो ब्लॉग की दुनिया में भी कदम रख दिया है . यह अपने कामो को जनता के बीच में ले जाने का एक बेहतर माध्यम है इन अधिकारियो के लिए जो प्राय राजनेताओ की तरह आम जनता के दरबार में नहीं जाते . पर सभी नवनीत की तरह परिपक्व अधिकारी नहीं है. कुछ नए पुलिस अफसरों का प्रोफाइल पढ़ कर तो लगेगा ही नहीं कि किसी आईपीएस श्रेणी के अधिकारी का प्रोफाइल आप पढ़ रहे है , विशेष करके जब वे पब्लिकली ये दावा करे कि वे दोस्ती, नेट्वर्किंग के साथ- साथ महिलाओ के साथ डेटिंग के लिए ऑरकुट पर है और उनकी पसंदीदा फिल्मे कुछ संजीदा फिल्मो के साथ कुछ इस प्रकार से है -अँधेरी रात में दिया तेरे हाथ में, जंगल में मंगल, कम्सिनो का कातिल, हुस्न के लुटेरे, प्यासे शैतान, गुलाबी राते, तनहा जवानी जैसी फिल्मो हो तो आम जनता को सोचना पड़ जाये गा कि किस तरह के अफसर रास्ट्रीय पुलिस अकेडमी हमे तैयार कर के दे रहा है. और अगर उक्त व्यक्ति यह भी कहे कि रात में सोने से जाने के पहले "फ टीवी" यानि फैशन टीवी देखना उसे पसंद हो तो थोडी चिंता होना लाजमी हो जाती है . अगर इस तरह के मानसिकता के अधिकारी के पास कोई महिला पीडिता जायेगी तो उसके साथ कैसा व्यहवार होगा ये कल्पना के दायरे के बाहर है. और वो किस तरह से अपने से नीचे महिला अधिकारियो के साथ पेश आयेगे ये भी चिंता का विषय है.
कुछ युवा अधिकारी अपने कठिन ट्रेनिंग के क्षणों को भी बाटते दिखे है , इनमे महिलाओ को पुरुष अधिकारियो के साथ कंधे - से - कन्धा मिलाकर कठिन ट्रेनिंग लेते देखना यादगार क्षणों में है.
फेस बुक में भी आपको एक महिला पुलिस अधिकारी दिख जाये गी पर अपनी कविताओ , तस्वीरो और व्यक्तिगत चर्चो के कारण ,इनमे कही भी वे स्त्री मुद्दों पर चर्चा करती हुई नहीं दिखी है. न ही पुलिस में स्त्रीओ की इस्थिति पर कुछ कहते या जनता को अपनी कथ्नियो से अवगत करते हुए नज़र आयी है. दुःख की बात है कि इस सोशल साईट का उपयोग अभी तक आम जनता को कई मुद्दों पर जागृत करने के लिए किया जासकता है , पर किया नहीं जा रहा है. कुछ युवा अधिकारियो का साहितिक लगाव भी उनकी कम्युनिटी देख कर पता चल जारहा है और उनकी संजीदगी का भी अंदाजा लगाया जा सकता है जैसे "अल्लामा मुहम्मद इकबाल ", लव -ट्रुए(true divinity), , उर्दू पोएट्री, अहमद फ़राज़, परवीन शाकिर , दीवाने ग़ालिब, बैच मेट की कम्युनिटी ,.कुछ अधिकारियो का पञ्च लाइन उनके जज्बे के बारे में बतलाता है जैसे " फलक को जिद है जहाँ बिजलिया गिराने की , हमे जिद है वहां एशिया बनाने की ." इनमे महिला अधिकारी अपने आपको पूरी तरह से सिमित रखी है. उनका प्रोफाइल सिर्फ उनकी उपस्थिति दर्ज करवा रहा है. कुछ सन्देश या संबाद बटता नहीं दिख रहा है.

कुछ आम जनता ने अपने पसंदीदा अधिकारियो के फेन क्लब बना लिए है, कुछ ने आने वाले सिविल अधिकारियो की कम्युनिटी बना ली है ताकि वे एक दूसरे का उत्साह बर्धन कर सके . कुछ पुलिस वालो का उत्साह वर्धन करने के भी कम्युनिटी बनी हुई है. आनेवाले दिनों में पुलिस अधिकारी किसतरह से इन सामाजिक साईट का उपयोग केवल अपनी तस्वीरो दर्शन से निकल कर जनता को कानून की पेचिदिगियो , कम्युनिटी पोलिसिंग को समझाने के लिए, जनता को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक बनाने के लिए , अपने मुश्किलात बटने और मुशीबत साँझा करने , नेताओ के दबाब से खुद को अलग करने , अपनी बेहतर सेवा और अपने अधिकारों की लडाई के लिए करते है ये तो वक़्त ही बताए गा. दूसरी ओर जनता उनके पास जा कर केवल वाह-वाही करने के अलावा कितनी उनसे जानकारिया प्राप्त करने के लिए , अपने अधिकारों की जानकारी के लिए ,समाज सेवा के लिए इस संपर्क का उपयोग करती है यह तो आनेवाला वक़्त ही बताये गा.
एक और याहू ग्रुप है "इंडियन टॉप कॉप" का जिसमे आईपीएस श्रेणी के अधिकारी के अपने विचार और विभिन्न जानकारिया आपस में बाटते है पर यह केवल उनके लिए है बाहर वालो के लिए नहीं. पर इनमे पोस्ट किये गए स्लाइड , मेसेज , परिचर्चा कभी ज्ञान्बर्धक और हास्यप्रद भी होती है.


माधवी श्री

सोमवार, 9 नवंबर 2009

क्या आप औरतो कि इज्ज़त कर के उस पर अहसान करते है.

प्राय आपको हमारे समाज में ऐसे धुरंदर मिल जाये गे जो आपको बार -बार याद दिलाते रहते है कि वे औरतो की कितनी इज्ज़त करते है. ऐसे सज्जनों का एक बंधा-बंधाया मानसिक दृष्टिकोण होता है कि स्त्रियों की इज्ज़त करनी चाहिए और ये एक बहुत महत्वापूर्ण कार्य है और इस कार्य को करने पर स्त्रियों की इज्ज़त में कितना इजाफा होता है यह तो मुझे नहीं मालूम पर ये सोचते है कि इनकी इज्ज़त में इजाफा जरूर होना चाहिए क्योंकि आखिरकार ये महिलाओ की इज्ज़त जैसा महत्वपूर्ण कार्य जो कर रहे है.
प्राय अधिकतर पुरुष इन विचारो से ग्रषित मिलते है .पर उनका भी दोष नहीं है आखिरकार हमारा समाज उनेह बचपन से यही बताता आया है कि वे लड़कियो से श्रेष्ठ है और लड़कियो की इज्ज़त कर वे उनपर बड़ा अहसान कार रहे है. क्यों की वर्षो से आजतक लड़कियो के जिन्दा रहने का हक उसके पैदा होने के पहले उसके घरवाले तय करते है कि उसे इस संग दिल समाज में आना चाहिए या नहीं. आज भी अगर कोई माता -पिता अपनी बेटी को बराबरी का दर्जा देते है तो लोग उनेह चेतावनी स्वरुप कहते है "बेटी को बेटा जैसा बना रहे है , बाद में नतीजा भुगतिएगा. सरकार चाहे जितने भी इश्तहार लगवा ले पर जब तक आम जनता के सोच में परिवर्तन नहीं आता ये स्वरुप नहीं बदल सकता. इस अथक कार्य के लिए समाज के हर हिस्से से प्रयास होते रहना चाहिए. तभी बदलाव की हवा चल सकती है .

गुरुवार, 5 नवंबर 2009

फिर बढे बस के किराये दिल्ली में.

दिल्ली सरकार जिस तरह से दाम बढा रही है बस के किराये का , आने वाले समय में गाड़ी में चढ़ना सस्ता होगा बजे के बस में चढ़ने के. कमान वेअल्थ गेम के नाम पर जनता की लूट अभी से शुरू हो गयी . सिर्फ दो- चार पोश इलाके चुन लिए गए है जैसे लोधी रोड , जनपथ, सीपी रोज इन्ही के चेहरे चमकाए जाते है जनता की गाधी कमाई से पद्पद गंज , भीतरी दिल्ली का इलाका तो पूरा सुन है और रस्ते उजडे हुए- उबड़ - खाबड़. .क्या ये दिल्ली की जनता नहीं है. इस पर धयान नहीं दिया जाना चाहिए.
अगर इस तरह किराये बढे तो जनता आनेवाले दिनों में सड़क पर उतर आये गी.पिछले तीन सालो में किराया १५०% बढ़ गया है. २००६ में २-५-७-१० रुपये का किराया था. फिर २००७ के शुरुआत में ३-५-७-१० का किराया लागु हुआ . अब मिनिमम किराया ५-१०-१५ कर दिया गया है. यानि सीधे १००% की बढोतरी गरीबो की जेब काटने के लिए. सरकार खुद तो गाड़ी में घूमती है और गरीब जनता ५०००-६००० कमाने वाले पीउन क्लास कैसे अपना घर संसार चलाये गा. उनेह तो कोई घूस देने से रहा.

मंगलवार, 3 नवंबर 2009

पुरुष

पुरुष मेरा मन करता है
तुम्हारा एक ब्रश बनाऊ
उससे अपने कमरे को बुहरू ,
अपने गंदे कपड़ो को साफ़ करू ,
दांत ब्रश करू , कोटे साफ करू ,
बालो पर ब्रश करू
और फिर उसे उठा कर अलमारी में रख दू........