मंगलवार, 3 नवंबर 2009

पुरुष

पुरुष मेरा मन करता है
तुम्हारा एक ब्रश बनाऊ
उससे अपने कमरे को बुहरू ,
अपने गंदे कपड़ो को साफ़ करू ,
दांत ब्रश करू , कोटे साफ करू ,
बालो पर ब्रश करू
और फिर उसे उठा कर अलमारी में रख दू........

5 टिप्‍पणियां:

रवि रतलामी ने कहा…

बड़े दिनों बाद एक बढ़िया कविता पढ़ी. :)

आफ़्टर आल, मेन, बेसिकली इज ए पिग इन डिस्गाइज़!

वाणी गीत ने कहा…

ha ha ha ha....bahut dinon baad blog par hansne ka aisa mauka mila ...!!

Himanshu Pandey ने कहा…

कुछ और उपयोग करिये ना पुरुष का !

प्रवीण त्रिवेदी ने कहा…

वाह जी वाह!

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) ने कहा…

chitthacharcha se yahan pahuncha hai...
apnee jaat ke baare mein padhkar bahut achha laga aur shayad main isliye comment kar rhaa hoon ki I want to say ki I am not a male chauvinist... :)