बुधवार, 25 नवंबर 2009

बिहारी और मराठी -बीच में देश का संविधान

महाराष्ट्र की विधान सभा में जो हुआ उसके लिए केवल राज ठाकरे एंड कंपनी को दोषी ठहराना काफी नहीं है. राजनितिक स्तर पर कांग्रेस , बीजेपी , एनसीपी की चुप्पी देश की एकता के लिए घातक सिद्ध हो रही है .किसी भी भाषा को नीचा दिखा कर किसी भी भाषा को ऊपर उठाया नहीं जा सकता है. हिन्दी को नीचे गिरा कर मराठी भाषा को स्थापित नहीं किया जासकता , न ही वो आम जनता के बीच कभी मान्य होगी .कोई भी भाषा जनता अपनी जानकारी बढ़ने के लिए ,या भाषा प्रेम या उस मिटटी में रहते -रहते जाने- अनजाने सीख जाती है. उसके लिए किसी तरह का अतिरिक्त दवाव की जरूरत नहीं होती. जब दबाब की जरूरत हो तो समझ ले आपसी प्रेम में दरार है या जरूरत की कमी है या कोई पक्ष हीनता बोध का शिकार है. जबरदस्ती तो आप किसी बच्चे को भी आज के ज़माने में कुछ सिखाने पर मजबूर नहीं कर सकते .
राज ठाकरे एंड कंपनी का इस तरह का बर्ताव क्या मराठी भाषा और मराठियो के लिए परेशानी का सबब नहीं बन जायेगा आनेवाले दिनों में ? आज की दुनिया में जब विश्व में हर जगह हर प्रदेश भाषा के लोग मिल जाते है ऐसी स्थिति में अगर महाराष्ट्र के बहार रह रहे मराठियो के साथ अगर दुर्वह्वार होता ही तो क्या राज ठाकरे एंड कंपनी उनेह बचाने आएगी. जो पढ़े -लिखे मराठी चुप रह कर राज ठाकरे एंड कंपनी को अपना समर्थन दे रहे है क्या वो घर से बहार निकल कर अपना मुकाम हासिल करने जायेगे तो क्या उनेह अगर इस तरह के बर्ताव का सामना करना पड़ा तो उनेह कैसा लगेगा?
अगर राज ठाकरे एंड कंपनी को मराठी भाषा और मराठी मानुष की इतनी चिंता है तो मराठी भाषा के उत्थान के लिए उनोह ने क्या योजना चलाई है ? उनके विकाश के लिए क्या योजनाये बनाई है सिवाय के उत्तर भारतियो को पीटने के. अगर bihari प्रतियोगिता परीक्षा दे कर नौकरी प्राप्त करता है तो उनेह मराठियो को भी मेहनत के लिए प्रेरित करना चाहिए और अगर वे प्रतियोगिता परीक्षा पास कर के नौकरी में आते है तो शिकायत तो होनी नहीं चाहिए.
सिर्फ अगर कोई वह पैदा हुआ हो इस कारण से वहां की चीजो पर अपना अधिकार जाताना चाहता है तो उसे अपने आपको उस स्थान के विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए तैयार रहना चाहिए न कि कोई और आकर मेहनत करे और उस जगह का विकास करे और जब फल प्राप्त करने का समय ए तो भूमि पुत्र जग गए.
और अंत में बिहार - यूपी के नेताओ के लिए कई दिनों से यह खतरे की घंटी बज रही है कि वे अपने प्रदेश में विकास के कार्यक्रम को तेजी से चलाये और साथ ही साथ सामाजिक विकास, परिवर्तन के भी बारे में सोचे, बिना उसके कोई भी विकास पूरी तरह से सफल नहीं होगा. विदेशो - देश में बसे कईयुवा bihari ऑरकुट के माध्यम से बिहार में बदलाव के बारे में सोच रहे है , बिहार सरकार को चाहिए कि वे उनेह विकास के कार्यक्रम से जोड़े और प्रदेश को इसका पूरा लाभ पहुचाये.

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