शुक्रवार, 27 नवंबर 2009

विनीता काम्टे २६/११ के शहीद वरिष्ठ पुलिस अधिकारी अशोक काम्टे कि पत्नी है . उनोह ने अभी एक पुस्तक लिखी है "To The Last Bullet",इस में उनोह ने उन कारणों की पड़ताल करने की कोशिश की है जिन कारणों से उनके पति और अन्य पुलिस अधिकारियो की मृत्यु हुई . उनका यह प्रयास न्याय पाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है ,एक महिला होकर उनोहने चुपचाप घर में बैठ कर नियति को स्वीकार करने की बजाय लड़ना बेहतर समझा . मेरी यह पोस्ट उनके जज्बे को सलाम है, उनकी जुझारू प्रवृति को सलाम है जिस में सच्चाई की तह तक जाने की ईमानदार कोशिश है.
उनके इस प्रयास से शायद पुलिस के अन्दर की खामियो को बहार लाने में मदद मिलेगी. एक बात और , अगर यही काम किसी पत्रकार ने किया होता तो और भी अच्छा लगता .

3 टिप्‍पणियां:

शरद कोकास ने कहा…

विनीता काम्टे की कलम को सलाम ।

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

@ “एक महिला होकर उन्होंने चुपचाप घर में बैठ कर नियति को स्वीकार करने की बजाय लड़ना बेहतर समझा . मेरी यह पोस्ट उनके जज्बे को सलाम है,”

आपके ब्लॉग का तेवर देखकर इस अंश पर हैरत होती है। आपने भी ‘महिला होने को’ कुछ अलग होना बता ही दिया। पुरुषों का झाड़ू बनाने का जज्बा कहाँ गया जी? :)

imnindian ने कहा…

आपके ब्लॉग का तेवर देखकर इस अंश पर हैरत होती है। आपने भी ‘महिला होने को’ कुछ अलग होना बता ही दिया। पुरुषों का झाड़ू बनाने का जज्बा कहाँ गया जी? :)
त्रिपाठी जी " महिला होना कुछ अलग होना नहीं होता है बस एक इन्सान भर होना होता है, पर समाज के हर तबके से उसपर इतना दबाब होता है की वो "बेचारी" हो जाती है , "कुछ अलग" हो जाती है. मेरी बात आप समझ रहे हो शायद .
रही बात पुरुष को झाड़ू बनाने की तो यह भी एक विचार या इच्छा थी कोई ४ साल पहले क्यों की उनके कारन औरते पता नही क्या क्या बनाई गयी है. ANYWAY SOCIETY में बहुत कुछ होता रहता है कविता उसकी प्रतिक्रिया होती है उस समय के लिए...