शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2009

पुरुष

पुरुष तुम समझते हो कि औरतो में सारे गुण
केवल तुम भरते हो .
अगर तुमेह ऐसा लगता है तो एक काम करो
रेड एरिया से एक देह उठा लाओ
और भर दो उसमे सारे गुण .
नहीं ? नहीं कर सकते ?
ओह, मै तो भूल गयी
तुम ही तो जाते हो वहां अपना बोझ हल्का करने.

सोमवार, 26 अक्तूबर 2009

जनतंत्र में विपक्ष का मजबूत होना

बहुत जरूरी है जनतंत्र में विपक्ष का मजबूत होना जनतंत्र के फायदे लिए . सत्ता पक्ष का मजबूत होना जितना जरूरी है देश को सही रूप से चलाने के लिए उतना ही जरूरी है एक मजबूत विपक्ष का होना उस पर अंकुश लगाये रखने के लिए. आग को पानी का खतरा लगातार होना चाहिए .बिना मजबूत विपक्ष के सत्ता पक्ष मनमानी पर उतर सकता है. आज कांग्रेस के मजबूत हाथो को एक मजबूत विपक्ष के दिशा निर्देश की जरूरत है. पर जिस तरह से बीजेपी अपने अन्दूरुनी मसले हल कर रही है उससे उसकी छवि जनता के बीच एक हारे-पिटे हुए पार्टी की हो गयी है . अडवानी जिस तरह से उसकी पार्टी के अन्दर विरोध और व्यहवार का सामना करना पड़ रहा है आने वाले समय में राजनीती के लिए ये अच्छे संकेत नहीं है. हार -जीत जीवन में लगे रहते है . आज कांग्रेस ऊपर है कल नीचे भी जा सकती है . पर जिस तरह से मीडिया पहले सोनिया गाँधी के पीछे पड़ी थी जब वो राजनीती में नयी आयी थी कि उनका ड्रेस कोड कैसा है , वो चलती कैसे है, वगेरा -वगेरा बेकार की बाते . आज वो अडवाणी के लिए ऐसा कह रहे है. बात यह नहीं है कि हम आलोचना कर सकते है या नहीं पर यह है कि हम किस स्तर की आलोचना करते है. आज अडवानी -विपक्ष के लिए जिस भाषा का इस्तेमाल किया जा रहा है वो पत्रकारिता के लिए भी अच्छा नहीं है. और विपक्षी पार्टी को भी सयम बरतना सिखाना चाहिए.

बुधवार, 21 अक्तूबर 2009

एक कविता

हर हिन्दू के अन्दर एक हिन्दू है
हर मुस्लमान के अन्दर एक मुसलमान
पर हर इन्सान के अन्दर एक इन्सान क्यों नहीं

दिल्ली पुलिस

एक मजेदार घटना बताती हूँ . अभी हाल में मै और मेरी एक मित्र पुरानी दिल्ली स्थित टाऊन हॉल में बदाली बंधू का गायन सुनने गए थे अंतररास्ट्रीय आर्ट फेस्टिवल के अर्न्तगत. वहा से लौटते वक़्त रात के कोई नौ बज गए थे . तो हम जरा जल्दी में थे. मेरी मित्र आगे बढ़ कर रिक्सा कर रही थी हम चाहते थे कि मेट्रो पकड़ ले ताकि घर पहुचने में सुविधा हो जाये. वो मेरे से थोडा आगे जा कर रिक्सा पकड़ रही थी , तभी मैंने देखा कोई पुलिसवाला उससे बाते कर रहा है. मैंने सोचा पता नहीं क्या हुआ क्यों कि पुलिस को देख कर वैसे भी हमारे मन में अच्छे विचार जरा कम आते है. जब मै वहा पहुची तो वो पुलिसवाला उससे कह रहा था कि अपने सामान ठीक से रखिये, रात को यहाँ छिनतई हो जाती है. मजे कि बात है उपदेश देनेवाला पुलिसवाला पूरी चढाये हुए था. मुझे उसे देख कर हसी भी आयी और गुस्सा भी .पूरी दारू चढा कर ये बन्दा अंतररास्ट्रीय आर्ट फेस्टिवल में ड्यूटी करने आया है. मैंने उनसे कहा कि ठीक है अगर आपको इतनी चिंता है तो मेट्रो तक हमारे साथ चले. तब वो तमक कर मुझसे बोले - आप जैसी तो बहुत आयीगी , यहाँ मेरे पास इतना टाइम नहीं है. तो मैंने कहा कोई बात नहीं हम अपनी देख भाल खुद कर लेगे.
ये घटना मैंने आप सब से ब्लॉग पर बाटने की सोची , पर तभी एक दिन दिल्ली के एक आला पुलिस अफसर से मेरी मुलाकात किसी काम के सिलसिले में हुई. तो मैंने इस घटना का जिक्र किया. उस आला पुलिस अफसर ने बड़े धयान से मेरी बात सुनी , फिर अंत में बोले - उसने आपको या आपकी मित्र को छेडा तो नहीं न. फिर क्यों चिंतित हो रही है.
इस बार मेरी स्थिति पहले से भी ज्यादा असमंजस वाली थी , समझ में नहीं आया हसूं या गुस्सा करू .

सोमवार, 12 अक्तूबर 2009

कल दिल्ली अंतररास्ट्रीय आर्ट फेस्टिवल में बडाली बंधुओ को सुनना एक स्वर्गीय अनुभव था. उसके कुछ सूफी गाने के बोल मै आपलोगों से बटना चाहूगी जिसका मतलब कुछ ऐसा निकलता है - "फकीरों के मजार पर दिए हमेशा जलते है , पर राजाओ - बादशाहों के मजार पर कौन दिए जलाता है.... " कितनी बड़ी बात बडाली बंधुओ ने कह दी एक छोटी सी लाइन में. एक बात और इतने बड़े फनकार हो कर भी उनमे विनम्रता इतनी कि कहते है कि - गायक तो बहुत है, गाना बहुत लोग गा लेते है , पर हम तो आप के सामने हाज़री लगाने आये है, हमारी हाजरी कबूल करे...
उनको सुनने की तमन्ना मुझे वर्षो से थी और इन्तेजार का परिणाम भी बेहतर निकला .दो घंटे जानते पता ही नहीं चले कैसे निकल गए....

बिहार और माइक्रोसॉफ्ट





ये पिक्चर मुझे मेल से मेरे एक मित्र ने भेजा , विषय था अगर लालू - रबडी मेक्रोंसॉफ्ट के बिल गेट्स को अगर बिहार बुलाये गे तो क्या स्थिति होगी ,उनकी और मिक्रो सॉफ्ट की. दिल पर मत लीजियेगा इस दिल्लगी को.

शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2009

दिल्ली में "बाडीर दुर्गो पूजो "


कोलकाता मै जा नहीं पाई इस बार भी दुर्गा पूजा के समय , तो पिछले दो सालो की तरह मैंने इस बार भी दिल्ली में इधर -उधर घूमने का फैसला किया और सोचा यहाँ कि यहाँ के पूजा पंडाल देख कर पूजा मना लूगी. पिछले साल मै दिल्ली इम्पेरिअल ज़ोन (बागला साहब गुरुद्वारा के सामने ) में दुर्गा पूजा मना कर आयी. उसके पहले साल चितरंजन पार्क में पूजा मना कर आई. इस बार हमारे महिला पत्रकार क्लब में वरिष्ठ पत्रकार निलोवा रोय चौधुरी ने सभी महिला पत्रकारों को अपने घर की पूजा में आमंत्रित किया. मै कई बार उनसे मिल चुकी लेकिन कभी उनसे खुल कर बाते नहीं हुई, पर जब मैंने उनसे उनके घर आने का निर्देश पूछा तो उनोह ने बड़ी आत्मीयता से मुझे समझाया. जब उनके घर महाअष्टमी के दिन गयी तो "बाडीर पूजो " (घर की पूजा ) देख कर मन खुश हो गया .हमारे बंगाल में महाष्टमी की अंजलि का बड़ा महत्व है. उस दिन मुझे अंजलि दे कर बड़ा सकून मिला . पूजा कर के जब निकली तो लगा दिल्ली में बंगाल की पूजा की याद ताजा करने में निलोवा जी को कितनी मेहनत लगी होगी क्योंकि बंगला टेस्टवाली पूजा का सामान इकठ्ठा करना यहाँ दिल्ली में आसन नहीं है. निलोवा जी की मेहनत हम जैसे परदेशियों को कितना सकून और अपनापन दे जाती है यह मै शब्दों में नहीं बया कर सकती . यह दुर्गा माँ की तस्वीर निलोवा जी के "बाडीर पूजो पंडाल " की है.

बुधवार, 7 अक्तूबर 2009

स्त्री और साधू

एक जेन कहानी सुनाने का मन कर रहा है आपको (शायद आपको पसंद आये ) - दो monk कही यात्रा कर रहे थे, एक युवा था एक थोडा बुजुर्ग . नदी के किनारे उनेह एक स्त्री मिली जो नदी पार करना चाहती थी पर उसे तैरना नहीं आता था. उसने साधुओ से प्राथना की कि नदी पार करने में वे उसकी सहायता करे. जब युवा साधू उसकी मदद करना चाह रहा था तब बुजुर्ग साधू ने उसे मना किया कि उनेह स्त्रीयों को हाथ लगाने की मनाही है. स्त्री ने फिर साधू से विनय की . युवा साधू ने उसके विनय को सुनते हुए उसे अपनी पीठ पर बिठा लिया और तैर कर नदी पार हो गया, पार हो कर उसने स्त्री को वही नदी किनारे उतार दिया. बुजुर्ग साधू को यह सब पसंद नहीं आया . जैसे ही वे मठ पहुचे , उसने तुंरत सभी मठ वासियो को बताना शुरु कर दिया कि युवा साधू ने लड़की को कंधे में विठा कर कर नदी पार करवाई है. सभी उसकी बाते ध्यान से सुनने लगे. जब युवा साधू से पुछा गया तो उसने बुजुर्ग साधू की और देख कर कहा - मैंने तो लड़की को सिर्फ नदी पार करने तक ढोया , और नदी पार करते ही उसे उतार दिया आप तो उसे अभी तक ढो रहे है....
हमारे देश में बहुत सारे लोग है जो औरतो को दिमाग में ढोते फिरते है..ये कहानी उनके लिए है...और उनके लिए भी जो बेकार कि चीजो को अपने दिमाग में जगह देते है...