गुरुवार, 6 अगस्त 2009

एक अनुभव


अभी हाल में एक सेमिनार के सिलसिले में मुझे पंजाब जाना पड़ा . वहा से हमें आनंद
पुर साहब लेजाया गया । काफी वर्षो से आनंद पुर साहब के बारे में सुना था , वहा जा कर एक अलग सा स्वर्णिम अनुभव हुआ। मेरे साथ जो खड़े है वो है इबुग गोचुबी । इबुग इम्फाल में पत्रकार है। पुरे यात्रा के दौरान हमलोगों ने इबुग को सेपरिस्ट (अलगाववादी) कह- कह कर चिढाया , पर इबुग ने जरा भी बुरा नही माना। उल्टा उसने कहा - बन्दूक दे दो मुझे। ऐसा है इबुग का सेंस ऑफ़ हूमर।
मेरे साथ जो महिला है , वो है वरिष्ट पत्रकार अशोक मालिक की पत्नी .बचपन में वो ट्रेन के डिब्बे में बैठ जाया करती थी और एक स्टेशन से दुसरे स्टेशन तक उतर जाने का खेल खेला करती थी । पूछने पर पता चला कि उनके पिता रेलवे में थे इस लिए सभी रेलवे कर्मचारी उनेह जानते थे। कोई कुछ नही कहता था । मासूम बचपन उनका ऐसे ही हँसते खेलते बीता। हम सभी का बचपन इतना ही सुंदर था। मेरा बचपन भी डंगा- पानी , कित- कित , इलास्टिक, गट्टा, गिल्ली- डंडा सभी खेलते बीता। आज वो दिन कल्पना की उडान लगते है। कभी- कभी लगता है वो हिस्सा मेरे जीवन का क्या मेरा था , क्या मैंने जिया था?

2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

सुंदर प्रस्तुतीकरण,
निसंदेह वो आपके ही जीवन का हिस्सा था, सभी के जीवन की सुन्दरता समय के साथ गुजराती है क्यूँकी खूबसूरती का और भी आयाम आपका इन्तजार करता है.
धन्यवाद.

Vinay ने कहा…

सुन्दर, बहुत सुन्दर प्रस्तुति
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