मंगलवार, 1 सितंबर 2009

औरत के संघर्ष की कहानी

अभी एक बंगला फिल्म देखी " श्वेत पथरे थाला " यानि सफ़ेद पत्थर की थाली . इस फिल्म में अल्पना सेन , सब्यसाची ,इन्द्राणी हालदार ,रितुपर्ना भी है. फिल्म की कहानी इतनी जबरदस्त है कि मै इसे कोई दस साल पहले देखना चाहती थी .पर मौका ही हाथ नहीं लगा . आज जब देखा तो लगा औरतो का संघर्ष कितना लम्बा और कठिन था और हम इसे भूल कर सिर्फ कपडे -गहनों में अटक कर रह गए है. फिल्म में अल्पना सेन एक ऐसे बंगाली औरत का किरदार निभाती है जो अपने पति की मृत्यु के बाद अपने छोटे बेटे की खातिर रंगीन साडी पहनना शुरू करती है और इसका प्रतिरोध पूरे घर में होता है सिर्फ उसे अपनी ननद से समर्थन मिलता है. और कुछ उसके चाचा का . कुछ दिनों के बाद वह नौकरी करना शुरू देती है और अपने बेटे को पलना शुरू कर देती है. पर वक़्त है हसीं सितम देखिये कि बेटा एक अमीर लड़की के प्रेम में पड़ कर कर अपनी माँ को अपमानित करता है . अपने पेंटिंग के टीचर के साथ अपनी माँ का नाम अपने ससुराल वालो के सिखाने पर लगाने लगता है. इससे आहत हो कर उसकी माँ सब कुछ उसके नाम कर के एक अनाथ आश्रम में चली जाती है. ये कहानी एक औरत के संघर्ष की कहानी है , अपने आप को समय के अनुसार अपने को define करने की कहानी है, ये एक औरत के लगातार समय से jujhane की कहानी है .

2 टिप्‍पणियां:

Madhukar ने कहा…

bachcho par yakin karna bhi muskil hai.

ओम आर्य ने कहा…

आपके लेख से .....एक सशक्त फिल्म लगती है ......बढिया