शनिवार, 12 सितंबर 2009

यह सिनेमा मैंने अभी हाल में देखी . वैसे इस सिनेमा मे कोई खास अलग बात नहीं है उन तमाम अंग्रेजी सिनेमाओ से जिनमे हर समय आदिम अस्तित्व पर खतरा मडराता रहता है. इसमें भी वही सब है पर बात जहा अलग सी दीख पड़ती है वो है इस फिल्म के माध्यम से यह बात दोहराई गई है कि अँधा धुन अगर हम मशीनीकरण कर लेगे अगर अपने जीवन का तो एक दिन मनुष्य का ही जीवन समाप्त हो जायेगा इस पृथिवी से .
इस फिल्म में वैज्ञानिक अपने मरने से पहले अपनी " मानवता " एक मशीन ९ में रख देता है जो बाद में मनुष्य की तरह ही हरकत करता है . वो बार - बार अपने साथियों को मुसीबत से निकलने के लिए अपने आप को खतरों में झोक देता है, वही उन का मुखिया सबको बचने के लिए सिर्फ छुप जाना पसंद करता है. वैसे ये कहानी बहुत हद तक मानवीय है पर पात्र सिर्फ मशीन है. कही -कही तो यही बात खलती है. और पात्रो का मानवीय होना ही हमे इस सिनेमा से बांधे रखता है. सभी पात्र आम इन्सान की तरह हरकत करते नज़र आते है चाहे वो एक दूसरे को डराने की कोशिश करते हुए या हावी होते हुए. मशीनी पात्रो के साथ ये फिल्म बहुत हद तक मानवीय है.



2 टिप्‍पणियां:

संजय तिवारी ने कहा…

आपकी लेखनी को मेरा नमन स्वीकार करें.

Pankaj Narayan ने कहा…

bahut hi khubsurat blog hai ye... maza ayaa bakbak sunkar