बुधवार, 16 सितंबर 2009

अप - यानि ऊपर : ऊपर की सैर


कल मैंने एक और पिक्चर देखी. पिक्चर "एनिमेटेड सिनेमा" थी. इस कारण लग रहा था कैसी होगी. पर जब देखी तो लगा इस सिनेमा में दो - तीन बाते जो हमे आम जीवन से जोड़ती है वो है हम सभी के अन्दर एक घुमक्कड़ आदमी रहता है जो वक़्त और जीवन की रोजमर्रा की जरूरतों के पीछे दौड़ - दौड़ कर थक जाता है. पर उसे अपने मन की मुराद पूरी करने की भी इच्छा रहती है .जब हमे मौका मिलता है तो हम उस मुराद को पूरी करने की कोशिश भी करते है.पर उम्र के ढलान पर यह जज्बा थोडा कमजोर हो जाता है. ऐसे समय पर जब हम किसी बच्चे से टकराते है तो उसका उत्साह हमे फिर से तरो- ताजा कर देता है. हम फिर से जीवन जीना शुरू कर देते है. छोटी सी मूवी में बहुत बड़ा सन्देश छिपा था. कभी- कभी छोटे बच्चे हमे ज्यादा कुछ सीखा देते है और गलत - स्वार्थ पूरण जीवन मूल्यों को वापस सही कर देते है .यह इस फिल्म में बहुत बेहतर तरीके से दिखाया गया है. मुझे एक बात खल रही थी - हमारी मुम्बैया फिल्म इंडस्ट्री ऐसी मूवी क्यों नहीं बनती जब कि ऐसे बहुत सारी कहानिया हमारे पास मौजूद है . हम बस नकलची की तरह नक़ल करते रहते है. बच्चो के लिए फिल्म डिविजन है पर वो बच्चो के लिए कितनी फिल्मे बनाते है? यह सिनेमा बच्चो को जितनी पसंद आयेगी बडो को भी उतनी ही पसंद आयेगी .बलून के सहारे पूरा घर लेकर उड़ना और हर नए चुनौतियो का मुकाबला करना इस फिल्म के खूबसूरत दृश्य है.

1 टिप्पणी:

exposeadvani ने कहा…

ह्मममम.... बढ़िया। आप फिल्म की गजब की शौकीन लगती हैं। लेकिन मामला ये है कि अपने हिंदुस्तानी सिनेमा के भाई लोगों के भेजे में ऐसी फिल्मों का कॉन्सेप्ट घुसता हिच नहीं। दूसरे यह महंगा बहुत होता है। उस हिसाब से जोखिम ज्यादा होता है। यहां फिल्म बनाने से पहले ये नाम तौल लिया जाता है कि चलेगी या नहीं। खासकर ओवरजीस का बिजनेस चकाचक होना चाहिए। इसलिए आजकर एनआरई जरूर ठूंसा जाता है इन दिनों बड़े बजट की फिल्मों में। लेकिन ऑफबीट सिनेमा में आपकी गहरी दिलचस्पी वाकई काबिल-ए-गौर और तारीफ दोनों है। एकदम मस्त।