"दिल बोले हदिप्पा" - यश राज प्रोडक्शन की यह फिल्म एन आर आई , क्रिकेट,भारत - पाकिस्तान की दोस्ती , पंजाब ,एक प्रेमी युगल की कहानी से कही दूर तलक आगे जाती है. फिल्म के दो सीन पूरी फिल्म को भीड़ से बिलकुल अलग खडा कर देता है . एक- जब वीरा ( रानी मुकर्जी ) को क्रिकेट खेलने से स्टेडियम का गॉर्ड रोकता है , तभी दुर्गा माता की सवारी जाती है - जब सब माता की सवारी देख कर शीश झुकते है तब वीरा कहती है, फोटो में बिठा कर जिसे पूजते हो इन्सान में उसे पा कर कुचलते हो . दूसरी - तुम लड़कियो को क्रिकेट खेलने से रोक सकते हो ,पर उसे सपने देखने से नहीं रोक सकते. खेल देखो ,खिलाडी का नाम मत देखो.अगर मै अच्चा खेलती हू तो लड़को के साथ खेलने में बुराई क्या है? आप कहते हो लड़कियो के साथ जा कर खेलो पर लड़कियो की टीम कहा है....?
वीरा के ये सवाल आज की प्रतिभा सम्प्पन ग्रामीण लड़कियो की सच्ची कहानी है और स्त्री विमर्श का एक महत्वपूर्ण प्रश्न जो आज भी यक्ष की तरह हमारे - आपके बीच खडा है...
इस फिल्म को अगर इस द्रिस्तिकोन से आप देखेगे तो पूरी फिल्म एक अलग सी दीख पड़े गी...फिल्म में रानी मुखर्जी उतनी फ्रेश नहीं लगी , अंत के कुछ दृश्यों में वो जबरदस्त लगी... लड़के की भूमिका में वो बिलकुल लड़का लग रही थी. शहीद कपूर मेरे पसंदीदा कलाकारों में है इसलिए मै उसके बारे में भेदभाव पूर्ण हो जाती हू. पर वो भी एक बेहतरीन कलाकार बन कर उभरे है इस फिल्म में. अनुपम खेर ,पूनम ढिल्लों ने अपनी भूमिका के साथ इंसाफी की है.
अंत में एक बात - इस फिल्म के निर्देशक अनुराग सिंह आई आई एम् सी , दिल्ली के २००५ बैच के पास आउट है ( विश्वस्त सूत्रों ने यह जानकारी दी है..) अब पत्रकार दूसरे पेशे में जयादा सफल होने लगेहै.
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