शुक्रवार, 11 सितंबर 2009

आज कुछ बचपन के दिनों की पुराने गाने याद करने का मन कर रहा है. जैसे जब हम बहुत छोटे थे तब एक भोजपुरी गाना था " छौडा पतरका रे मारे गुलेलवा जिया रा उड़ उड़ जाये , छौडी पतरकी रे मारे गुलेलवा जिया रा उड़ उड़ जाये....."इसे हम भाई बहन, सारे मौसेरे भाई बहन मिलकर छुटियो के दिनों में पटना में मौसी के छत पर खूब जोर -जोर से गया करते थे मिल - जुल कर और नचा भी करते थे . बड़े मजेदार थे वो दिन. कहा चले गए जब दुनिया के मारा मारी की कोई चिंता भी नहीं थी.

एक और गाना याद है उन दिनों का लोक गीत - " सिलौडी बिन चटनी कैसे पीसी ..." ये गाना गा कर सारे बड़े लोग फूस -फूस कर के हँसा करते थे मुझे आज तक नहीं समझ में आया क्यों हँसा करते थे. माँ मुझे डँटा करती थी इसे गाने से पर मै गाती रहती थी. बिना किसी परवाह के .
एक और बंगला गाना जो हम उन दिनों कोलकाता में खूब गाया करते थे -" एने दो रेशमी साडी , चोले जाबो बापेड बाडी..." यानि " मेरे लिए रेशमी साडी ला दो मै अपने बाप के घर चली जाउ गी. "दीदी बोले ........." और याद नहीं आ रहा है....
आज के लिए इतना ही ....

2 टिप्‍पणियां:

समय चक्र ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति. लोकगीतों के बारे में जानकारी मिली . शुक्रिया.

संजय तिवारी ने कहा…

आपकी लेखन शैली का कायल हूँ. बधाई.