हमारे देश में मीडिया , नेता एक सोच के तहत काम करते है. जैसे ही किसी को पार्टी से निकल दिया गया ,तत्काल उसे सभी संवैधानिक पद छोड़ देने चाहिए. जसवंत सिंह के मामले में भी यही हुआ. उन से पीएसी का पद छोड़ देने के लिए कहा जा रहा है. और उनोह ने टका सा जवाव भी बीजेपी को भेज दिया. मीडिया खुश ;उसे एक खबर मिल गयी .
पर क्षण भर के लिए मीडिया क्या कभी सोचता है रुक कर कि थोडा रुका जाये और देखा जाये कि घटना क्रम क्या रुख लेते है. फिर इसकी रिपोर्ट आम जनता को दी जाये. उसे तो बस हड़बड़ी पड़ी रहती है , कच्चा - पक्का परोसने की. किसी का पेट ख़राब हो तो हो.
नेताओ और पार्टी में भी सब्र नहीं कि, जिस व्यक्ति ने इतने दिनों तक पार्टी के लिए काम किया उसके बारे में थोडा रुक कर सोचे. , थोडा ठहर कर काम करे. तुंरत सन्देश भेजना है , इसी हड़बड़ी में सब रहते है , चाहे अंत में अपना टका सा मुह ले कर ही क्यों न रह जाना पड़े.
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3 टिप्पणियां:
सही कहा आपने,
इसलिए मैथिली में मुहावडा है "हड़बड़ी बियाह कनपटी सिनूर"
मगर शायद ही कोई सबक ले
मीडिया को क्यों रुकना चाहिए। खबर है तो है। मीडिया तो किसी से नहीं कहता कि पार्टी से किसे निकालो, क्यों रखो। निकाल दिया तो भी बताया, पीएसी से नहीं हटे तो भी बताया। अगर ऐसे रुकने लगे तो खबरों का बेड़ा गर्क हो जाएगा। मीडिया का काम है खबर देना। तथ्य की गड़बड़ी हो अलग बात है लेकिन जो हुआ है वो खबर बता दी तो इसमें कौन सा कहर टूट पड़ा। अगर नहीं बताएंगे तो आप कहेंगी मीडिया बीजेपी की खबर दबा देता है। आपको नहीं लगता कि आजकर मीडिया को कोसने का फैशन सा चल चुका है। मीडिया हवा में काम नहीं करता। देश-काल और परिस्थितियों में मीडिया अपने तेवर गढ़ता है। अंतरिक्ष से दर्शक और पाठक मिलने से रहे।
खबर का मतलब ये नहीं जो आया वो उगल दो , इसमें बीजेपी - कांग्रेस वाली कोई बात नहीं है. सीधी सी बात है जब हम बच्चे थे तब भी हमे समय के अनुसार ज्ञान दिया जाता था ,मतलब ज्ञान से ज्यादा उसके टाइमिंग की कीमत होती है. थोडा ठहरना हमें चाहिए नहीं तो एक्सीडेंट का खतरा बना रहता है. बीज को पकने दे. सब्जी को पकने ,तभी स्वाद आये गा. खबर भी ऐसी ही चीज है... (मेरे हिसाब से...)
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