बुधवार, 9 दिसंबर 2009

आज से आप लोगो को अपने लिखे उपन्यास की सैर कर करवाने ले जाती हूँ . उपन्यास का नाम है - " कुछ अनसुनी कहानिया ". ये तीन औरतो की कहानी है....
- बिछड़े दोस्त -

दोस्तों आपलोगों को एक कहानी सुनानी है . कहानी है तीन औरतो की . अब आप कहेगे औरत ही क्यों ? मर्दों की क्यों नहीं ? तो बात यह है कि
यह मेरा पहला उपन्यास है , मै खुद एक महिला हूँ . फिर समाज के हर वर्ग का व्यक्ति औरतो में दिलचस्पी ज्यादा लेते है . फिर चाहे वह आदमी हो , मीडिया हो , सरकार हो, विपक्ष हो , अन्दर के लोग हो या बाहर के लोग . खुद औरते भी आज -कल अपने आप में दिलचस्पी लेने लगी है. इसलिए आज- कल नित नए महिला विचार - विमर्श का आयोजन होता है और पुरुषो के साथ- साथ स्त्रीयां भी इसमें कंधे से कन्धा मिला कर भाग लेती है .
ऐसा है कि ये कहानी तीन प्रोढ़ावस्था को पार कर चुकी औरतो की है. ( उनेह न कहिये गा वर्ना वो खफा हो जाये गी वे तो अभी भी खुद को युवाओ से ज्यादा युवा समझती है ) समाज की नजरो में इन साठ वर्ष की औरतो के जीवन में कुछ खास नहीं बचा है , पर ये मानती है कि इनके जीवन में अभी ही तो स्थायित्व आया है जब वो बैठ कर अपने संघर्षमय जीवन का आनंद ले सकेगी .

क्रमश :

2 टिप्‍पणियां:

Sanjeet Tripathi ने कहा…

chaliye ji , intejar karye hain......

muskurahat ने कहा…

swagat hai...lekin apna to ek baar poora parhkar khatm karne kee aadat hai... man aapke upnayas par hee atka rahega...