गुरुवार, 24 दिसंबर 2009

संध्या और औरत होने की पीड़ा

बहुत अच्छा लिखा है संध्या ने या ये कहू कि महिला होने का कर्त्तव्य अदा किया है. बहुत पहले ये रिपोटिंग मैंने पढ़ी थी , जब मै कॉलेज में थी कोलकाता मै. यकीन मानिये वो रिपोर्टिंग आज भी मेरे दिमाग में उतनी ही ताजा है जितनी कि आज पढ़ कर. आप कह सकते है कि उस रिपोर्टिंग का HORROR आज भी मेरे दिमाग से नहीं गया है. मेरे ख्याल से किसी भी लड़की या स्त्री के दिमाग से नहीं जा सकता. ये रिपोर्टिंग उस समय KOLKATA 'S TELEGRAPH के WOMEN section में निकली थी . आज भी ये कहानी हर अख़बार में है छापी है वर्सो बाद . औरतो का दर्द सिर्फ खबर बन कर रह जाता है. जजों- वकीलों के लिए बहस का मुद्दा भर . सबूतों की तलाश में उसकी जिंदगी इंसाफ के लिए दम तोड़ देती है पर साबुत नहीं जुटा पाता है - न समाज न इंसाफ के पैरोकार . मजे की बात हैकि उनकी कहानी पिंकी जैसी अकेली महिला सामने लाती है , महिला संगठन का इसमें कोई रोल नहीं , वो तो कही बैठ कर" दान - चंदे " का मामला सुलझा रही होती है. वर्षो से औरत पर बलात्कार करना उसे काबू में या बदला लेने का माध्यम रहा है. इसलिए बलात्कारी को इतनी काम सजा नहीं दे कर छोड़ा जाना चाहिए. उसे एक हत्यारे से भी बड़ी सजा होनी चाहिए क्यों कि उसने जीते जी एक इन्सान की हत्या की है.
लिखना तो बहुत चाहती हूँ इस पर इसलिए नहीं कि ये मेरा पेशा है बल्कि मै सिद्दत से महसूस करती हूँ तभी लिख पाती हूँ . पर मै आज लिखने के बजाय आपको कुछ पढवाना चाहती हूँ. एक नयीलेखिका है , उसने भी बहुत सिद्दत से इस पर कुछ लिखा है. संध्या पेशे से विदेशी कंपनी में नौकरी करती है और किसी से प्रेम ( जो हर लड़की इस उम्र में करती है ....). आप उसके लिखे को जरूर पढ़े
http://jaanahaitaaroseaage.blogspot.com/

1 टिप्पणी:

Sandhya ने कहा…

Thank you mam ...first time I saw it