शुक्रवार, 18 दिसंबर 2009

महिला पत्रकारों की कहानी

जब पत्रकारिता में पुरुषों का वर्चस्व था और जल्दी किसी महिला का इस पेशे में होना एक दुर्लभ बात मानी जाती थी तब से इस पेशे से जुडी नीरजा चौधुरी आज दिल्ली में स्थित महिला पत्रकारों के प्रेस क्लब की अध्यक्ष ही जिसमे 550 से अधिक केवल महिला पत्रकार सदस्य है. ३५ वर्षो से आधिक के अपने लम्बे सफ़र में नीरजा ने कई उतर -चढाव देखे है. अपने पुराने दिनों को याद करती हुई नीरजा कहती है कि ६० के दशक में जब मुंबई में वे "हिम्मत " से जुडी थी तब the statesman के तत्कालीन संपादक कुलदीप नैयेर ने एक समारोह में कहा था कि - हम महिलाओ को प्रेफेर नहीं करना चाहते क्यों कि प्रशिक्षित करने के बाद वे शादी करके चली जाती है . उनके लिए नौकरी वेटिंग रूम की तरह होता ही. ७० के दशक में यही तस्वीर ३६० का यू टर्न लेती है. ७० के दशक में the statesman के तत्कालीन संपादक सी आर ईरानी कहते है कि - हम महिलाओ को पत्रकारिता में प्रेफेर करते है क्यों कि वो सीरियस , समर्पित और भरोसेमंद होती है . नीरजा मानती है कि यह एक दशक का बहुत बड़ा क्रन्तिकारी बदलाव है . नीरजा के लम्बे पत्रकारिता के कैरीअर में खुद को एक पॉलिटिकल पत्रकार की तरह स्थापित करने के लिए उनोहने कभी देर रात पार्टी , क्लब , इधर-उधर बेबजह दौड़ने का सहारा नहीं लिया . अपने परिवार और काम के बीच में संतुलन स्थापित करने के लिए नीरजा बतलाती है की जब वो इंडियन एक्सप्रेस में थी तब सुबह की मीटिंग में रहने होने के बाद वे सीधे घर की और दौड़ती थी , तभी उनोहने गाड़ी भी खरीदी थी अपने काम में सामंजस्य स्थापित करने के लिए. जब उनके सहकर्मी ऑफिस के बाहर चाय-पानी पीते थे तब वे अपने बेटे के साथ क्वालिटी टाइम गुजर रही होती. इसके बाद वे फिर ऑफिस की और दौड़ती ,या अपने सोर्स की तरफ. नीरजा कभी अपनी स्टोरी के लिए एक सोर्स पर निर्भर नहीं रही है. वे सब से बात -चीत करना पसंद करती है. हंसमुख और मिलनसार स्वभाव की नीरजा युवा पत्रकारों के साथ भी उतनी ही गरम जोशी के साथ मिलती है जितना कि वे अपने वरिष्ट पत्रकार मित्रो और राजनेताओ के साथ मिलती है. ये नीरजा की ही पारखी नजर का कमाल है कि १९९५ में वो सोनिया गाँधी पर लिखती है -" AT THE MOMENT SHE IS MORE LIKELY TO POSITION HERSELF IN SUCH A WAY SO THAT SHE CAN BE THE POWER BEHIND THE THRONE ". ये उनोह ने एक दशक पूर्व तब लिखा था जब २००४ में सोनिया गाँधी ने अपने प्रधानमंत्री न बनाने की प्रसिद्ध घोषणा की थी .
नीरजा का नाम अगर पॉलिटिकल पत्रकारिता में आदर के साथ लिया जाता है तो शांता सरबजीत सिंह का नाम कला और संस्कृति पत्रकारिता में परिचय का मोहताज नहीं है . उनोह ने THE FIFTIETH MILESTONE; A FEMININE क्रितिकुए नामक पुस्तक लिखी जिसमे ५० महत्वपूर्ण महिलाओ के बारे में जानकारी दी गयी है. जो भारत के ५० स्वाधीनता वर्षगाठ के अवसर पर आई . इसके अलावा NANAK, THE GURU भी उनोह ने लिखी है. वे consultant for UNESCO and the World Culture Forum Alliance ( WCFA) जैसी अंतररास्ट्रीय संस्था की सलाहकार भी है. १९७२ से वेHindustan Times में नृत्य पर निरंतर लिख रही है और गुलाबी अखबार " The Economic टाईम्स" की स्थाई स्थाभ्कर है २५ वर्षो से ज्यादा (१९७०--२०००) . इसके अलावा देश - विदेश के अन्य पत्र- पत्रिकाओ में निरंतर उनके लेख छपते रहते है. उनोहने देव्दाशी परंपरा और लदाख की संस्कृति पर एक वृत्त चित्र भी बनाये है. वे कई रास्ट्रीय और अंतररास्ट्रीय स्तर की कमिटी में रही है और रास्ट्रीय फिल्म समारोह में जूरी के पड़ को भी सुशोभित किया है. इसके अलावा कैनंस और बर्लिन अंतररास्ट्रीय फिल्म समारोह में उनेह लगातार बुलाया जाता है भारतीय मीडिया में लेखन के लिए. शांता - नीरजा की पीढी में पत्रकारिता के क्षेत्र में कोमी कपूर ,उषा राय , कल्याणी शंकर का नाम उनके कामो के कारण लिया जाता है . ऐसा कहा जाता है कि दिल्ली के पॉवर सर्कल का ऐसा कोई भी गॉसिप नहीं है जो कोमी कपूर और उनके पत्रकार पति को मालूम न हो. उषा राय जब टाईम्स ऑफ़ इंडिया में थी और जब वे पहली बार गर्भवती हुई तो उनोहने छुट्टी मांगी तब उनेह कहा गया - the rule books had to be consulted for TOI had no tradition of maternity leave. ऐसा कहा जाता है कि जब वरिष्ठ पत्रकार बच्ची काकरिया statesman में नौकरी के लिए गयी तो उनेह यह कह कार मना करदिया गया कि स्तातेस्मन में महिला टॉयलेट नहीं है. आज की महिला पत्रकारों को यह जान कर आश्चर्य होगा कि नौकरी न मिलने कि यह भी वजह हो सकती है.
महिला पत्रकारों के लम्बे संघर्ष का नतीजा है कि आज पत्रकारिता का परिदृश्य बदल है. पर उपस्थिति बदली है स्थिति नहीं. दिल्ली में भास्कर की तेज तर्रार पॉलिटिकल पत्रकार स्मिता मिश्र जो अपने बीजेपी कवरेज के लिए जानी जाती है
उनोह ने जब दस साल पहले पत्रकारिता शुरू की थी जम्मू - कश्मीर जैसे सवेदनशील इलाके से तो महिला पत्रकारों को हार्ड बीट नहीं दिया जाता था केवल संस्कृति -सेमिनार तक उनेह सीमित रखा जाता था. जब स्मिता ने आर्मी,पुलिस और राजनीती जैसे मुद्दे पर लिखना शुरू किया तो उनेह ओउत्सिदर होने का दंश झेलना पड़ा . पर अपने काम से उनोह ने सब का मुंह बंद कर दिया. आर्मी के द्वारा बुलाई गयी "पत्रकारों की विजिट गाव में " से उसने युवा महिलाओ के आपरेशन की ऐसी स्टोरी अमर उजाला वालो के लिए ब्रेक की कि उसके सारे एडिशन में उसे लेलिया गया . इसके बाद तो आर्मी वाले उससे सतर्क रहने लगे और उसे काम में म़जा आने लगा.
]ज्योति मल्होत्रा का नाम विदेश मामलो कि जानकर के रूप में सम्मान के साथ लिया जाता है. २५ वर्ष के लम्बे सफ़र में ज्योति ने अपनी शुरुआत कोलकाता के telegraph अखबार से कि थी. उसके बाद वे इंडिया एक्सप्रेस, टाईम्स ऑफ़ इंडिया , मिंट आदि कई अखबारों से गुजरते हुए आज दिल्ली में स्वतंत्र पत्रकार है. ज्योति कि यादगार रिपोर्टिंग में २००१ कि मुशरर्फ का आगरा सम्मेलन रहा जब वे ९ माह की गर्भावस्था में थी. उस समय उनेह बड़ा रोमांच आया था रिपोर्टिंग करने में. ज्योति बताती है कि उनके सभी सहकर्मीयो ने उनके साथ भरपूर सहयोग किया था. वे ज्योति के सामने सिगरेट नहीं पीते थे, ज्योति ने खुद सिगरेट उस समय छोड़ रखी थी.
वर्तिका नंदा जो NDTV के दिनों से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में अपने अपराध के सवेदनशील रिपोर्टिंग के लिए जानी जाती है का मानना है कि महिला पत्रकार को अपने महिला होने कि पहचान को बचाए रखते हुए पत्रकारिता करनी चाहिए. उनके यादगार रिपोर्टिंग में उत्तरी दिल्ली का एक दहेज़ हत्या का मामला है जिसमे मृतका के आखो में उसके ससुराल वालो ने सुई चुभो कर मारा था. वर्तिका बताती है कि उसने रिपोर्टिंग ख़तम करके उस मृतिका की साँस से कहा - आंटी जब आप की बेटी के साथ भी ऐसा हो तो मुझे जरूर बुलाना.

काफी लम्बी यात्रा करचुकी महिला पत्रकारों की बड़ी लम्बी लिस्ट है - जिसमे शुभा सिंह ,अन्नू आनंद , पारुल जो दिल्ली जनसत्ता में एडिशन भी संभालती है ,सेवंती नैनं जो अपना the hoot .org नामक मीडिया पर वेब साईट चलती है ,मनिका चोपडा, .हिनुस्तान अखबार की संपादक मृणाल पाण्डेय . दिल्ली के प्राय सभी रास्ट्रीय -अंतररास्ट्रीय अखबार - पत्ररिकाओ में महिला पत्रकारों ने अपनी महत्वपूर्ण जगह बना ली है. ये सब उनके लगातार कठिन परिश्रम की नतीजा है.

अभी हाल में २ नवम्बर को चंडीगढ़ प्रेस क्लब की ओर से आयोजित महिला पत्रकारों पर केद्रित सेमिनार में वरिष्ठ पत्रकार ननकी हंस ने कहा कि कमसे कम ४०% महिलाये जो मीडिया में है काफी लम्बे समय से अपने पदोन्नति का इन्तेजार कर रही है. आगे ननकी कहती है कि महिलाये शोषण को चुपचाप सहने की आदी हो गयी है .उनोह ने इस बातकी ओर सभी का ध्यान दिलवाया कि उत्तर - पूर्व राज्यों में केवल २५ महिला पत्रकार है. ननकी हंस ने कहा कि कमसे कम ४०% महिलाये जो मीडिया में है काफी लम्बे समय से अपने पदोन्नति का इन्तेजार कर रही है. आगे ननकी कहती है कि महिलाये शोषण को चुपचाप सहने की आदी हो गयी है .उनोह ने इस बातकी ओर सभी का ध्यान दिलवाया कि उत्तर - पूर्व राज्यों में केवल २५ महिला पत्रकार है.इस सम्मलेन में यह बात भी निकल कर आयी कि टॉप एडिटोरिअल पोसिशन में केवल ६% महिलाये है .

दिल्ली में भारतीय महिला पत्रकार कोर्प्स की स्थापना की कहानी भी महिला पत्रकारों की कहानी से कम दिलचस्प नहीं है. एक बार १८ महिला पत्रकारों ने प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया के प्रागन में बैठ कर निर्णय लिया की उनका भी अपनी एक ऐसी जगह होनी चाहिए जहा सभी महिला पत्रकार एक दूसरे से मिल सके. आपस में चर्चा कर सके. वरिष्ठ पत्रकार सरोज नागी जो इस गोष्ठी में शामिल थी का कहना है कि यह क्लब पीसीआई की प्रतिछाया नहीं है बल्कि महिलाओ के लिए अपने एक स्थान की कल्पना थी. नीरजा कहती है कि उन १८ महिलाओ ने १००० रुपये अपने पास से निकले और एक फंड तैयार हो गया. फिर जगह के लिए जद्दो जहद की गयी . उस समय के तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के हस्तक्षेप से लुटियन दिल्ली में संसद का एक खाली बंगला महिलाओ को अपने प्रेस क्लब के लिए मिला. पहली बैठक में सभी अपने घर से लाये हुए दरी - कुशन पर बैठी. उन १८ दूरदर्शी महिला पत्रकारों के नाम है मृणाल पांडे , उषा राय,कल्याणी शंकर ,रश्मि सक्सेना,

कोमी कपूर , हरमिंदर कौर, अनीता कात्याल , कुमकुम चढ्ढा ,मनिका चोपडा , राधा विस्वनाथ , नीरजा चौधरी, पामेला फिलिपोसे, ऋतंभरा शास्त्री , रश्मि सहगल, सुषमा रामचंद्रन ,सरोज नागी , शीला भट्ट और अमृता अभरम . आज ये १८ महिलाओ पत्रकारों की संख्या बढ़ कर ५०० से ऊपर हो गयी है . जिसके क्लब में मीरा कुमार, कृष्ण तीरथ , प्रणब मुकर्जी ,पाकिस्तान के विदेश मंत्री कुरैशी तक आचुके है.प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह अपने प्रेस कांफ्रेंस की शुरुआत महिला पत्रकारों के दल को संबोधित कर शुरू करते है. ये महिला पत्रकारों की जमात की मह्तावता को रेखांकित करती है.

1 टिप्पणी:

अफ़लातून ने कहा…

नीरजादी को प्रणाम ।